सितारा देवी भारतीय संगीत विद्या की एक ऐसी सितारा थीं, जिनके न होने से एक बड़ा खालीपन महसूस हो रहा है। सिर्फ कथक ही नहीं, वे संपूर्ण कला जगत की सितारा थीं।

गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने उन्हें सोलह साल की उम्र में ही नृत्य साम्राज्ञी की उपाधि दे दी थी, जिसकी वे सचमुच हकदार थीं। उन्होंने गीत, वाद्य और नृत्य की बारीकियों को आत्मसात कर अपने नृत्य को एक खास मुकाम पर पहुंचाया। उनके स्वाभिमानी और विद्रोहिणी स्वभाव का जो जिक्र संपादकीय (27 नवंबर) में हुआ है, वह साबित करता है कि एक कलाकार का जीवन किन संघर्षों से भरा होता है।

 

उर्वशी गौड़, भजनपुरा, दिल्ली

 

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