जनसत्ता 13 अक्तूबर, 2014: तवलीन सिंह ने अपने लेख ‘जिहाद पर उदार’ (वक्त की नब्ज, 7 सितंबर) की शुरुआत में ही लिखा कि ‘इसलिए शायद कि मैं हिंदू नहीं हूं मेरे लिए समझना मुश्किल है कि हिंदू अपने आप से इतनी नफरत क्यों करते हैं।’ उनका सारा असंतोष इस बात से था कि हिंदू पत्रकार, बुद्धिजीवी, राजनीतिक पंडित आदि ‘जेहादियों’ को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे हैं। उनके अनुसार जब उसामा बिन लादेन के साथी, ऐमन अल जवाहिरी ने एक वीडियो के जरिए एलान किया कि अल कायदा अब अपने जिहाद का दफ्तर भारत में खोलेगा तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए। मगर अफसोस कि हिंदू समाज उसे गंभीरता से नहीं ले रहा है। वास्तव में इसकी वजह यही है कि आम हिंदू इतना बेवकूफ नहीं है जितना तवलीन सिंह या बहुराष्ट्रीय निगमों को विकास का पर्याय मानने वाले लोग सोचते हैं।

हिंदू समाज का आम पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपने इतिहास, पौराणिक गाथाओं और अनुभव से जानता है कि असली घुसपैठ और साजिशें एलान करके नहीं की जातीं। उसे यह भी पता है कि शहरों में मोटरगाड़ियों में बम फटेंगे तो उससे मुसलमान भी हताहत हो सकते हैं। इसके जरिए मुसलमानों का राज स्थापित हो जाने की योजना भारत जैसे देश में कामयाब होना तो दूर की बात है। इसको थोड़ा-सा भी अमल में लाने के लिए भारत की समूची पुलिस और गुप्तचर व्यवस्था को निकम्मा करने की जरूरत होगी, जो फिलहाल किसी जिहादी के बूते के बाहर की बात है। भारतीय पुलिस और खुफिया तंत्र को निकम्मा सिर्फ भारत सरकार ही बना सकती है कोई जवाहिरी नहीं।

हिंदू जनमानस को छठी शताब्दी ईसा पूर्व मेंअजातशत्रु के ब्राह्मण मंत्री द्वारा लिच्छवी गणराज्य में फूट डलवाने और उसे अंदर से खोखला करने की साजिश का पता है, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी ऐसी साजिशों का उल्लेख है। राजघरानों में गद््दी के लिए भाई-भाई में संघर्ष, कत्ल की साजिश आदि क्रियाकलाप मानव समाज में तब से होते रहे हैं, जब दुनिया में ‘इस्लाम’ का नामोनिशान तक नहीं था। इसका यथार्थ ‘महाभारत’ में प्रस्तुत हुआ है और ऐसा न हो इसके लिए आदर्श चरित्र के रूप में ‘रामायण’ के दशरथ पुत्रों को प्रस्तुत किया गया है। पुराणों और अन्य धर्मशास्त्रों में राक्षसी अत्याचारों की गाथा है, जो कतई ‘मुसलमान’ नहीं थे।

राजगद््दी के लिए पुत्र का पिता को बंदी बना लेना, भाइयों का कत्ल करना, भतीजों की हत्या करना आदि क्रियाकलाप हिंदू समाज में इस्लाम के आगमन के सदियों पहले होते रहे थे और चाचा बलवीर द्वारा भतीजे उदय सिंह की हत्या का प्रयास (जिसे पन्ना धाय ने अपने बेटे की जान की कीमत पर बचाया), राघोवा द्वारा अपने भतीजे की हत्या आदि घटनाएं मुसलिम राजघरानों की उठा-पटक के समांतर होती रही हैं।

रही बात आज की दुनिया की तो यहां भी हिंदू समझ रहा है कि ‘जहां तेल वहां युद्ध’ हो रहा है। लेकिन तेल पर वर्चस्व बनाए रखने में लगे मुनाफाखोरों की सेवा करने वाली सरकारें, उनके बुद्धिजीवी यह चाहते हैं कि इल्जाम धनवान पर नहीं, मुसलमान पर लग जाए। लेकिन हिंदू जानता है कि लक्ष्मी की सवारी उल्लू है, जो अंधेरे में शिकार करता है, रोशनी से डरता है, रोशनी फैलाने वाले सूरज, चांद, सितारे ही नहीं, बल्कि जुगनू, टार्च, मशाल सब उसके लिए आतंकवादी हैं। मगर हिंदू क्यों उल्लू की नजरों से दुनिया देखेगा?

असीम सत्यदेव, देवरिया

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta