अक्सर ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं कि किसी व्यक्ति ने लाखों रुपए के आभूषण या नकदी मिलने पर उसके मालिक को खोज कर लौटा दिए। लेकिन बेईमानी के किस्से ही बहुतायत में देखने को मिलते हैं। दूसरे कई देशों में जरूर ईमानदारी एक आदत की तरह कायम है। मसलन, जापान में सुनामी के चलते अपना घरबार छोड़ कर दूसरी जगह चले गए लोग जब लौटे तो उनका कोई सामान चोरी नहीं गया था। जबकि हमारे यहां सांप्रदायिक दंगों या किसी दुर्घटना जैसी स्थिति में भी लोगों की मदद करने के बजाय कीमती सामान को हड़पने के वाकये आम हैं। इसी से समाज में यह धारणा बनती है कि ईमानदारी और नैतिकता के लिए कोई जगह नहीं रह गई है। यही नहीं, इन मूल्यों पर चलने वालों को अव्यावहारिक समझा जाने लगा है।

विडंबना यह भी है कि अगर कोई व्यक्ति बेईमानी या धोखाधड़ी के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे तरह-तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। भ्रष्ट लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकने वालों के लिए जान का जोखिम तक पैदा कर देते हैं। मंजुनाथ, सत्येंद्र दुबे और कई आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्याएं इसी का उदाहरण हैं। इस सबके बावजूद ईमानदारी की प्रेरक घटनाएं सामने आती रहती हैं, जो बताती हैं कि उम्मीद का एक कोना समाज में बचा हुआ है।

अरविंद गोस्वामी, कुंदनकुंज, मेरठ

 

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