इन दिनों भ्रष्टाचार और घोटालों को व्यवस्था और समाज के सबसे बड़े रोग के रूप में मान लिया गया है और सौ-दो सौ रुपए जैसी बहुत छोटी रकम के लिए भी हत्या तक कर देने की खबरें आती हैं। ऐसे में रुपए से भरा बैग रास्ते में लावारिस मिलने के बावजूद एक गरीब परिवार के दो बच्चों के भीतर कोई लोभ नहीं पैदा हुआ तो यह हैरानी की बात लगती है।
मुंबई के भिवंडी में बारह साल के अनिकेत और मोनाली नाम के दो स्कूली बच्चों को घर लौटते हुए अस्सी हजार रुपयों से भरा बैग मिला। संयोग से उसमें एक पासबुक और फोन नंबर था। बच्चों ने तुरंत अपने पिता सादू को बताया और उन्होंने पड़ोसी से मोबाइल लेकर सेवानिवृत्त शिक्षक अफजल खान को खोज कर उन्हें वह बैग सौंप दिया। गौरतलब है कि सादू सुरक्षा गार्ड की नौकरी और उनकी पत्नी घरेलू सहायिका का काम करके गुजारा करते हैं, एक झुग्गी बस्ती में रहते हैं।
हमारे समाज में हालांकि कमजोर तबकों के लोगों पर विश्वास करने के मामले कम पाए जाते हैं, इस तथ्य के बावजूद कि ईमानदारी साबित करने की ज्यादातर घटनाएं इन्हीं के बीच से सामने आती हैं। चकाचौंध से भरे शहरों-महानगरों के किन्हीं गुमनाम कोनों में खड़े ऐसे ही लोग दुनिया में नैतिकता और इंसानियत में भरोसा बचाए रखते हैं, लेकिन विकास की मौजूदा परिभाषा और दायरे से वंचित भी यही वर्ग है। यह ज्यादा से ज्यादा धन की भूख और विकास का फायदा उठाने वाले वर्गों के मुकाबले अभावों के बीच गुजर-बसर करने वालों की हकीकत है।
सवाल है कि वह कौन-सा पारिवारिक और सामाजिक प्रशिक्षण है, जिसमें पलते-बढ़ते बच्चे हजारों रुपयों से भरा बैग देख कर भी लालच में नहीं आते? अगर कोई व्यक्ति या परिवार ईमानदारी और नैतिकता के मूल्यों को लेकर दृढ़ है तो इस तरह की बातें बच्चों के स्वभाव और आचरण में घुलना मुश्किल नहीं है।
विनय कुमार सारस्वत, उज्जैन
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