एक ओर सरकार ‘बेटी बचाओ अभियान’ चला रही है तो दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने लिंग परीक्षण अनिवार्य करके गर्भवती महिलाओं की निगरानी का सुझाव दिया है।

जब हम बेटे-बेटियों में फर्क ही नहीं करना चाहते तो लिंग परीक्षण क्यों?
भ्रूण के लिंग परीक्षण के बाद प्रसव तक गर्भवती महिला भला कैसे सहज रह पाएगी जब उसे पता चलेगा कि परिजनों इच्छा के विरुद्ध गर्भ में लड़का है या लड़की? मेनकाजी का यह सुझाव बेटियों को बचाने के पवित्र मकसद के सर्वथा विरुद्ध है लिहाजा इसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
’नरेंद्र सोनी, कोटा, राजस्थान्