हमारे देश में आज भी हर तरफ रावण मौजूद हैं। जहां भ्रष्टाचार का रावण अनेक सिर लिए अलग-अलग कार्यालयों में घोटालों को अंजाम दे रहा है वहीं महंगाई का रावण रसोई का जायका बिगाड़ रहा है। कालेधन का रावण पूंजीपतियों के हौंसलों को हवा दे रहा है। न जाने कितने रावण हमारे बीच रह कर रावण से भी बदतर होने का प्रमाण दे रहे हैं। रावण एक बुरी सोच का प्रतीक है। लेकिन बुराई आज भी हमारे समाज को दिन-प्रतिदिन कलंकित कर रही है। कहीं दहेज का रावण बहन-बेटियों को केरोसीन डाल कर जल रहा है तो कहीं व्यभिचार का रावण सीता तुल्य स्त्रियों का चीरहरण करने पर उतारू हो रहा है। जब तक हमारे भीतर की रावणवादी अभिमानी और स्वार्थी-संकीर्ण सोच का मर्दन नहीं हो जाता तब तक कागज का रावण फूंकने और अतिशबाजी करने से कोई फायदा होने वाला नहीं है।
’देवेंद्रराज सुथार, जालोर, राजस्थान</p>