कुछ समय पहले प्रधानमंत्री ने वादा किया कि अगले पांच साल में किसानों की आय दुगुनी कर देंगे। यह वादा है या सब्जबाग? किसानों की आमदनी की कड़वा सच यह है कि उन्हें सरकार के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी जितनी भी आय नहीं होती। उलटे, मौसम के प्रतिकूल हो जाने यानी सूखा, बाढ़, पाला लगने से लेकर आयात-निर्यात के गलत फैसलों से होने वाले नुकसान और वायदा बाजार के प्रभाव तक, ढेर सारे जोखिम अलग से रहते हैं। किसान अपनी पूंजी लगाता है, कर्ज का जोखिम मोल लेता है, खेती में पूरे परिवार को खटना पड़ता है, पर कई बार न्यूनतम मजदूरी जितनी भी आवक नहीं होती।

जब मौसम की मार या कीट-प्रकोप आदि के चलते फसल चौपट होती है तब तो किसान मुसीबत में होता ही है, जब उपज अच्छी होती है तब भी अक्सर वाजिब दाम न मिल पाने के कारण वह खुद को ठगा हुआ महसूस करता है। यही कारण है कि खेती में लगे लोगों में से ज्यादातर विकल्प मिलने पर इसे छोड़ना चाहते हैं। पर खेती की यह हालत देर-सबेर एक मानवीय संकट को जन्म दे सकती है। अगर कोई खेती करना ही नहीं चाहेगा, तो हमारी खाद्य सुरक्षा का क्या होगा?

खेती के घाटे का धंधा बन जाने की हकीकत हमारे नीति निर्माताओं से छिपी नहीं है। पर वे इस स्थिति को बदलने के लिए कुछ कर क्यों नहीं रहे? क्या वे चाहते हैं कि खेती की जमीन किसानों के हाथ से निकल कर कंपनियों के हाथ में चली जाए?

प्रधानमंत्री ने किसानों की आय पांच साल में दुगुनी हो जाने का सपना दिखाया है, पर यह होगा कैसे यह नहीं बताया। अगर वे चाहते हैं कि किसानों की आय पांच साल में दुगुनी हो जाए तो उनकी सरकार ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में महज साठ रुपए प्रति क्विंटल की बेहद मामूली बढ़ोतरी क्यों की! किसानों की आमदनी पांच साल में दुगुनी तभी हो सकती है, जब हर साल बीस फीसद की दर से उसमें इजाफा हो? पिछले एक साल में किसानों की आमदनी कितनी बढ़ी है? उस हिसाब से अंदाजा लगा सकते हैं कि पांच साल में कितनी बढ़ेगी? क्या उनकी आमदमी पांचवें साल एकाएक दुगुनी हो जाएगी? क्या यह मोदी का नया जुमला है? काले धन की वापसी के नारे की असलियत लोग जान चुके हैं। क्या मोदी अब नए अगले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से नए जुमले उछाल रहे हैं!

रामजनम, धौरहरा, वाराणसी</strong>