राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, इसके आनुषंगिक संगठन और चेरी भारतीय जनता पार्टी सामाजिक और धार्मिक सहिष्णुता में भरोसा करते हैं, यह आरोप उन पर आज तक कोई नहीं लगा सका। यही विभाजनकारी नीति उनकी शक्ति है। भाजपा जब-जब मजबूत होती है तब-तब धार्मिक असहिष्णुता उसी अनुपात में परवान चढ़ने लगती है।
पिछले तीन दशकों में भाजपा क्रमश: मजबूत होती गई और उसी के साथ-साथ देश का सांप्रदायिक माहौल जहरीला होता गया। माहौल को जहरीला बनाने में मुसलिम और कुछ ईसाई संगठन भी अपनी ताकत के अनुपात में योगदान देते रहे। पर संख्या और शक्ति में कम और कमजोर होने के नाते इनकी हैसियत या भूमिका भाजपा के पिछलग्गू की ही रही।
जब हिंदू सांप्रदायिकता का उग्र और तीव्र तांडव होता है तो प्रतिक्रिया स्वरूप ये भी विघटनकारी और निंदनीय उछल-कूद करने लगते हैं। नेहरू के बाद कांग्रेस ने भी धर्मनिरपेक्ष्ता को विकृत ही किया था। था इसलिए कि आज तो वह इस हैसियत में ही नहीं है कि समाज पर किसी भी तरह का कोई प्रभाव छोड़ सके। जब भी भाजपा के सांप्रदायिक और असहिष्णु चरित्र पर कोई टिप्पणी करता तो भाजपा उसे राजनीति से प्रेरित छद््म धर्मनिरपेक्ष लोगों का ढोंग निरूपित कर खारिज करने की आक्रामक कोशिश करती रहती।
आज जब भाजपा सत्ता में है, अपने योगदान के ढोल बढ़ा-चढ़ा कर पीट रही है। पहले ‘अमेरिका फतह’ और फिर गणतंत्र दिवस पर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करके उनसे दांत काटी रोटी और लंगोटिया यारी का प्रहसन और प्रचार का शोर थम भी नहीं पाया था कि ‘पक्के दोस्त’ ने आईना दिखाते हुए भारत में धार्मिक असहिष्णुता की बढ़ती हुई घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि आज यदि गांधी होते तो वे स्तब्ध होते। कूटनीतिक भाषा की सीमा में जो कुछ कहा जा सकता था उससे कुछ अधिक ही ओबामा ने कह दिया। भाजपा की बात और ही है वरना समझदार को इशारा काफी होता है।
ओबामा को धन्यवाद कि उन्होंने सत्ता के मद में चूर लोगों को आईना दिखा दिया। यही बात देश के किसी समझदार व्यक्ति या भुक्तभोगी ने कही होती तो ये अपने स्वभाव के अनुसार बहुत आक्रामक तरीके से पेश आते। यहां तो नसीहत उनके आका ने ही दे डाली। हालत यह हो गई कि ‘जबर मारे और रोने न दे।’ लाज ढंकने के लिए न्यूनतम विरोध के तौर पर अपने स्वभाव के विपरीत बहुत ही शालीन और संतुलित तरीके से कागद पर लिखे आदर्श वाक्य में अरुण जेटली ने कहा कि भारत का सहिष्णुता का बड़ा सांस्कृतिक इतिहास रहा है और राजनाथ सिंह ने- जहां तक धार्मिक सहिष्णुता का सवाल है, यह भारतीय परंपरा का अंग है, कह कर ओबामाजी की बात को नकारने का प्रयास किया। भाजपा नेताओं को इतना शालीन और सुसंस्कृत तरीके से प्रतिरोध जताते हुए शायद ही कभी किसी ने देखा हो। अरुण जेटली और राजनाथ सिंह ने कागद की लेखी तो सही बयान कर दी पर ओबामा तो आंखिन देखी कह रहे हैं!
’श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
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