बुधवार को पूरे देश में सब बंद था और देर शाम लोग इस बात की खुशियां भी मना रहे थे! इतने बड़े पैमाने पर बंद क्यों? वजह चाहे जो हो, मांगें चाहे कितनी भी जायज क्यों न हों, पर बंद के आयोजन का औचित्य समझ नहीं आता।

कुछ भी पसंद न आए तो सब जगह ताला डाल कर बैठ जाने की क्या तुक है? लोग इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। वाह भई इंकलाब! जिसने यह नारा दिया था, वह तो देश की हालत पर आंसू ही बहा रहा होगा।

पर क्या ये लोग नहीं जानते कि बंद खुशियां मनाने की वजह नहीं है। इससे नुकसान तो हमारा ही हो रहा है। असंतोष किसे नहीं होता! खैर, हम ठहरे छात्र। लोग कहेंगे, हम किसी का दर्द नहीं समझते!

संचिता पाठक, पुरुलिया, पश्चिम बंगाल

 

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