प्रधानमंत्री की किताब ‘एग्जाम वॉरियर्स’ का विमोचन हुए कुछ ही दिन बीते थे कि भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश से चिंताजनक समाचार आने लगे। राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं के पहले ही दिन साठ हजार से ज्यादा परीक्षार्थी अनुपस्थित पाए गए। चंद दिनों के भीतर ही यह संख्या बढ़ते-बढ़ते दस लाख हो गई है। उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षार्थियों की संख्या के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा बोर्ड है। अब अगर बोर्ड या प्रदेश सरकार गिनीज बुक को आवेदन करें तो बोर्ड के नाम इसके लिए एक और रिकॉर्ड दर्ज हो सकता है। दुनिया में शायद ही कहीं दस लाख परीक्षार्थियों ने एक बार में परीक्षा छोड़ी होगी। दस लाख योद्धा ‘रण-छोड़’ कर क्यों भाग गए, यह सवाल हैरान करने वाला है। पंजीकृत परीक्षार्थियों की संख्या 66 लाख के करीब बताई गई है। यानी पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा परीक्षार्थियों ने परीक्षा नहीं दी।
राज्य सरकार का तर्क है कि पहले परीक्षा के दौरान नकल होती थी, लेकिन अब सरकार ने इसे रोकने के कड़े उपाय किए हैं। इसलिए नकल के भरोसे रहे परीक्षार्थी परीक्षा छोड़ रहे हैं। इस दावे में सच्चाई हो सकती है, लेकिन तब भी हमारी शिक्षा और परीक्षा प्रणाली पर प्रश्नचिह्न तो लगता ही है। यह प्रश्न राज्य की मौजूदा सरकार पर ही नहीं है, बल्कि पूर्ववर्ती सरकारों, शिक्षा-नीति और प्रशासन से जुड़े बड़े व छोटे अधिकारियों, शिक्षकों और अभिभावकों- सभी के लिए है। उत्तर प्रदेश के 2016-17 के बजट में माध्यमिक शिक्षा और सर्वशिक्षा अभियान पर क्रमश: 66 हजार करोड़ रुपए और 19 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का प्रावधान था। पूरे भारत में सर्वशिक्षा अभियान पर पिछले सालों में बहुत बड़ी रकम खर्च की गई है और 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून पारित करके 6-14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित की गई। अगर सरकार से पूछेंगे कि इन सबसे क्या हासिल हुआ तो आंकड़े जोर-शोर से बोलेंगे, लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या निरंतर घट रही है और गरीब तबके के लोग भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। इस बात की कोशिशें भी नीतियों व नियमों के जरिए की गई हैं कि बच्चों को स्कूल/परीक्षा से डर नहीं लगना चाहिए। लेकिन कहावत है कि ‘हाथ कंगन को आरसी क्या’!
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि बोर्ड परीक्षा से डर कर भाग रहे ये दस लाख और देश में इन जैसे लाखों छात्र-छात्राएं, जो नकल के सहारे टिके हैं या इसके भरोसे नैया पार करने की उम्मीद पाले हैं, जीवन के कड़े इम्तिहानों, जो कदम-कदम पर आते हैं, का सामना डट कर भला कैसे करेंगे? ये पास हो भी गए तो इनके पास क्या शिक्षा और कौशल है? ये क्या रोजगार करने लायक होंगे? ये देश के लिर पूंजी/परिसंपत्ति हैं कि बोझ?
’कमल जोशी, अल्मोड़ा, उत्तराखंड</strong>
