चीन की अर्थव्यवस्था आज भारत के मुकाबले कहीं आगे है। 2019 चीन की जीडीपी भारत के मुकाबले 4.78 गुना ज्यादा थी। भारत के दो साल बाद 1949 में आजाद हुए चीन की ग्रोथ रेट 1980 तक भारत के बराबर ही थी, लेकिन फिर अचानक चीन की अर्थव्यवस्था ने गियर बदला और आज कहीं आगे है। आखिर चीन ने ऐसा क्या किया, जो हम नहीं कर पाए या फिर चीन के पास ऐसा क्या है, जो भारत के पास नहीं है। आइए जानते हैं, चीन और भारत की अर्थव्यवस्था में कैसे बीते 4 दशकों में आया बड़ा अंतर…

30 साल तक लगातार 10 पर्सेंट रही चीन की जीडीपी: भारत और चीन की इकॉनमी 1980 तक लगभग बराबर ही थी। प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में तो भारत अपने पड़ोसी देश के मुकाबले कुछ आगे ही था। लेकिन फिर 1980 से 2010 तक चीन ने लगातार 10 फीसदी की जीडीपी ग्रोथ हासिल की। यही नहीं उसके बाद भी चीन की जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी के करीब बनी रही है। जानकारों के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चीन ने इन सालों में खुद को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के हब के तौर पर स्थापित किया है। भारत के मुकाबले चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 8 गुना ज्यादा बड़ा है।

लेबर पॉलिसी के चलते चीन को मदद: इसके अलावा आर्थिक जानकार मानते हैं कि चीन में भारत के मुकाबले श्रम कानून काफी नरम हैं। चीन ने एक तरह से फ्री लेबर मार्केट की नीति को अपनाया है। इसके चलते चीन में उत्पादन में इजाफा हुआ है और लागत कम लगती है। इसी के चलते चीन में एक्सपोर्ट से जुड़े मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का तेजी से विस्तार हुआ है। दरअसल विदेशी कंपनियों की चीन में मैन्युफैक्चरिंग कराने की लागत काफी कम आती है। ऐसे में उन्होंने चीन में बड़े पैमाने पर निवेश किया। वहीं चीन ने स्पेशल इकनॉमिक जोन जैसी नीति पर काफी वक्त पहले ही काम करना शुरू कर दिया था।

भारत से एक दशक पहले खोला था मार्केट: भारत के मुकाबले चीन की अर्थव्यवस्था के रफ्तार पकड़ने की एक वजह उसकी ओर से 1980 में बाजार खोला जाना भी है। चीन ने भारत के मुकाबले करीब एक दशक पहले ही आर्थिक उदारीकरण की नीतियों को लागू किया था, जबकि हमने 1991 में इन नीतियों को लागू किया। यही नहीं जानकार मानते हैं कि जिस दौर में चीन ने अपनी इकॉनमी को खोला था, उसके पास मानव संसाधन को लेकर बढ़त थी। उस दौर में भी चीन में साक्षरता की दर 64.4 पर्सेंट थी, जबकि भारत में यह औसत महज 37 फीसदी का ही था। इसके अलावा लैंगिक समानता और बाल मृत्यु दर के मामले में भी चीन की स्थिति बेहतर थी। इसके चलते वह मानव संसाधन के मामले में भारत पर बढ़त बनाने में कामयाब रहा।