जीएसटी के शिल्पकार कहे जाने वाले पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की आज पहली पुण्यतिथि है। इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने पूर्व कैबिनेट सहयोगी को याद करते हुए कहा है कि बीते साल इसी दिन हमने अरुण जेटली जी को खो दिया था। मैं अपने दोस्त को बहुत मिस करता हूं। अरुण जेटली का निधन भारत की राजनीति और बीजेपी के लिए तो बड़ी क्षति रही ही है, खुद पीएम नरेंद्र मोदी के लिए भी यह एक अहम साथी को खो देने जैसा था। वित्त मंत्रालय से लेकर रक्षा मंत्रालय तक की अहम जिम्मेदारी संभालने वाले अरुण जेटली को विद्वान राजनेताओं में शुमार किया जाता था, लेकिन वह राजनीति के भी उतने ही पक्के खिलाड़ी थे।

आडवाणी युग के बाद उभरे पीएम नरेंद्र मोदी की जब समकालीन बीजेपी के बड़े नेताओं में स्वीकार्यता एक चुनौती थी, तब अरुण जेटली खुलकर उनके साथ खड़े हुए थे। यही नहीं कई अहम कानूनी मामलों से लेकर चुनावों तक में वह चाणक्य की भूमिका में रहते थे। यही कारण है कि उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी का संकटमोचक कहा जाने लगा था। आइए जानते हैं, वाजपेयी से लेकर मोदी तक की कैबिनेट का अहम हिस्सा रहे अरुण जेटली के कैसे थे पीएम के संबंध…

अरुण जेटली के बंगले में रहते थे मोदी: पीएम नरेंद्र मोदी के समूचे राजनीतिक करियर में अरुण जेटली की अहम भूमिका रही थी। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि जब नरेंद्र मोदी बीजेपी के संगठन महासचिव के तौर पर काम देखते थे तो पार्टी मुख्यालय के बगल में स्थित अरुण जेटली के बंगले 9, अशोक रोड पर ही रहते थे। यही नहीं कहा जाता है कि 2001 में गुजरात के तत्कालीन सीएम केशुभाई पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को लाने में अरुण जेटली की भी अहम भूमिका थी।

2002 के गुजरात दंगों के बाद किया था बचाव: सबसे अहम मोड़ 2002 में आया, जब गुजरात दंगों के बाद चौतरफा राजनीतिक हमलों से घिरे नरेंद्र मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी तक ने राजधर्म के पालन की सीख दी थी। उस दौरान अरुण जेटली नरेंद्र मोदी के बचाव में आए थे। इसके अलावा दंगों से जुड़े कानूनी मामलों और राजनीतिक संकटों में से उबरने में भी अरुण जेटली ने बड़ी मदद की थी। खासतौर पर कानूनी दांवपेच के जानकार होने के चलते अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी के काम को आसान किया था।

गुजरात मॉडल को अरुण जेटली ने ही किया था लोकप्रिय: ‘गुजरात मॉडल’ के नाम पर गांधीनगर से दिल्ली तक का सफर तय करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी की यह राह भी अरुण जेटली ने ही आसान की थी। कहा जाता है कि विकास के गुजरात मॉडल को प्रचारित करने में उनका अहम रोल था।

पीएम के तौर पर किया था प्रोजेक्ट: 2009 का लोकसभा चुनाव बीजेपी हार गई थी और यहीं से पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव की आहट महसूस की जाने लगी थी। लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव में पराजय के बाद बदलाव का स्वर उठाने वाले लोगों में अरुण जेटली अहम थे। उन्होंने ही धीरे-धीरे 2014 में नरेंद्र मोदी को पीएम प्रत्याशी के तौर पर प्रोजेक्ट करने की राह तैयार की थी। यही नहीं बीजेपी की केंद्रीय टीम के तमाम नेताओं के विरोध का भी सामना करते हुए उन्होंने मोदी की राह बनाई थी।