उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य और प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए कामगार श्रमिक सेवायोजन एवं रोजगार आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। मंगलवार को सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में यह फैसला लिया गया। सूबे के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने मजदूरों के हित में इस तरह का फैसला लिया है। इसका नाम होगा उत्तर प्रदेश कामगार श्रमिक सेवायोजन एवं रोजगार आयोग। इस आयोग के तहत एक एग्जीक्युटिव बोर्ड का गठन किया जाएगा। इसके अलावा जिला स्तर पर भी इससे जुड़ी समितियों का गठन किया जाएगा।

योगी सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि आयोग का गठन कामगारों और श्रमिकों को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए किया जा रहा है। आयोग के मुखिया सूबे के सीएम होंगे। इसके अलावा श्रम एवं सेवायोजन विभाग के मंत्री संयोजक हैं। एमएसएमई मंत्री और औद्योगिक विकास मंत्री इसके उपाध्यक्ष हैं। कृषि, ग्राम्य विभाग, पंचायती और नगर विकास मंत्री इसके सदस्य होंगे।

इसके अलावा जिला स्तर पर डीएम अध्यक्ष होंगे और 19 अन्य सदस्य बनाए जाएंगे। प्रभारी मंत्री होंगे उन्हें जिले के डीएम सारी रिपोर्ट देंगे। सारे विधायकों को रिपोर्ट दी जाएगी। हर हफ्ते बैठक की रिपोर्ट तैयार होगी। प्रभारी मंत्री हर महीने जिले में जाएंगे, तब डीएम पूरी रिपोर्ट उन्हें देंगे। प्रभारी मंत्री हर महीने उस रिपोर्ट के आधार पर समीक्षा करेंगे और उसकी रिपोर्ट सीएम को देंगे। सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि मजदूरों के हित में इस तरह से विचार करने वाली योगी आदित्यनाथ सरकार देश में अकेली है। उन्होंने कहा कि इससे मजदूरों और कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा की जा सकेगी।

मनरेगा के तहत रोजगार देने में नंबर वन बना राज्य: इस बीच उत्तर प्रदेश मनरेगा के तहत रोजगार देने के मामले में राजस्थान को पछाड़कर देश का नंबर वन राज्य बन गया है। यूपी में फिलहाल 57.2 लाख मजदूर मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं, जबकि राजस्थान में यह आंकड़ा 53.45 लाख का है। दरअसल लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में शहरों से मजदूरों का गांवों की ओर पलायन हुआ है। इसी के चलते गांवों में मनरेगा के तहत रोजगार की मांग बढ़ी है। हाल ही में यूपी सरकार ने दावा किया था कि कोरोना काल में उसने 15 लाख नए मजदूरों को मनरेगा के तहत काम दिया है।