मेहनत और फिर कुछ कर गुजरने की लगन हो तो जीत की राह मुश्किल नहीं होती। ऐसी ही कुछ कहानी है डिजिटल वॉलेट मोबिक्विक (Mobikwik) की सह संस्थापक उपासना टाकू की, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर एक अपनी सफलता हासिल की और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई।
उपासना टाकू के मुताबिक वह एक शैक्षणिक पृष्ठभूमि से आती है। उस समय जब उन्होंने पहली बार परिवार में पहले उद्योगपति बनने के फैसले को बताया था तब परिवार में इसका काफी विरोध हुआ था लेकिन हार न मानते हुए परिवारवालों को इसके लिए राजी किया, जिसके बाद अमेरिका में पेपल (Paypal) एक आरामदायक नौकरी छोड़कर भारत लौटी। जहां उन्होंने 2009 अपने पति प्रीत सिंह के साथ मिलकर डिजिटल वॉलेट की शुरुआत की। उपासना टाकू ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उस समय पूरी अर्थव्यवस्था में नकद का बोलबाला था। भारत में केवल कुछ लाख लोग डिजिटल लेनदेन करते थे। हमें लगा कि यहां पर एक बड़ा मौका है।
स्कॉलरशिप के लिए करना पड़ा संघर्ष: उपासना टाकू के लिए विदेश में पढाई करना इनता आसान न था। एनआईटी जालंधर से बीटेक करने के बाद उनका चयन अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हो गया, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यूनिवर्सिटी की फीस भरने के लिए स्कॉलरशिप का इंतजाम करना था। टाकू ने स्कॉलरशिप के लिए एक महीने विभिन्न जगहों पर खुद जाकर आवेदन किया, जिसके बाद उन्हें एक लाख डॉलर की स्कॉलरशिप मिली।
आज बड़ी कंपनियों में शामिल: आज मोबिक्विक भारत के बड़े डिजिटल वॉलेट में शामिल है। टाकू के मुताबिक देशभर में मोबिक्विक के 12 करोड़ से ज्यादा उपभोक्ता है। देश में 30 करोड़ डिजिटल लेनदेन में से 10 करोड़ मोबिक्विक से होते हैं। कंपनी का बाजार में मुख्य मुकाबला पेटीएम, फोनपे और गूगलपे जैसी कंपनियों से है।
IPO लाने की तैयारी में मोबिक्विक: मोबिक्विक को बाजार नियामक सेबी से आईपीओ के लिए मंजूरी मिल गयी है। सेबी के पास दाखिल किये गए ड्राफ्ट पेपर के मुताबिक कंपनी शेयर बाजार से 1900 करोड़ रुपए जुटा सकती है। हालांकि आईपीओ कब आएगा इस बारे में कंपनी की तरफ से कोई सूचना नहीं डी गई है।