वित्त मंत्री अरुण जेटली सोमवार को अपना तीसरा आम बजट पेश करेंगे। उनके सामने कृषि क्षेत्र और उद्योग जगत की जरूरतों के बीच संतुलन बैठाने की कड़ी चुनौती होगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बीच सार्वजनिक खर्च के लिए संसाधन जुटाने का भी लक्ष्य होगा। आयकर के मोर्चे पर बजट में कर स्लैब में यथास्थिति कायम रख इसमें कर छूट में बदलाव हो सकता है। वित्त मंत्री आज किसे खुश करेंगे और किसे नाराज ये देखने वाली बात होगी।

एक के बाद एक सूखे की वजह से ग्रामीण क्षेत्र दबाव में है। इस वजह से वित्त मंत्री पर सामाजिक योजनाओं में अधिक खर्च करने का दबाव है। उनको विदेशी निवेशकों का भरोसा भी जीतना होगा जो तेज सुधारों की मांग कर रहे हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। ऐसे में अगले साल के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 फीसद पर रखने के पूर्व में घोषित लक्ष्य से समझौता किए बिना वे इसे कैसे करते हैं यह देखना होगा।

जेटली कारपोरेट कर की दरों को चार साल में 30 से 25 फीसद करने के अपने वादे को पूरा करने के लिए भी कुछ कदम उठाएंगे। बजट में इस प्रक्रिया की शुरुआत कर सकते हैं, जिसमें कर छूट को वापस लिया जाना शामिल होगा। सरकार की आमदनी बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री को अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने होंगे या नए कर लगाने होंगे। सेवा कर को पिछले साल बढ़ा कर 14.5 फीसद किया गया है। जीएसटी में इसके लिए 18 फीसद की दर को जो प्रस्ताव है उसको देखते हुए सेवा कर में बढ़ोतरी हो सकती है। पिछले साल लगाए गए स्वच्छ भारत उपकर की तरह स्टार्ट अप इंडिया या डिजिटल इंडिया पहल के लिए धन जुटाने को लेकर नया उपकर लगाया जा सकता है। वित्त मंत्री के एजंडे में निवेश चक्र में सुधार भी शामिल होगा।

उनके सामने बुनियादी ढांचा क्षेत्र में खर्च बढ़ाने की चुनौती होगी। निजी निवेश वांछित रफ्तार से नहीं बढ़ने से सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की भी चुनौती होगी। देखने वाली बात होगी कि जेटली अपनी जेब ढीली करते हैं या मजबूती की राह पर ही कायम रहते हैं। अगर सरकार खर्च बढ़ाने का फैसला करती है, तो यह सुनिश्चित करने की चुनौती होगी कि वह कैसे धन को पूंजीगत निवेश में ला पाती है।

मूडीज इन्वेस्टर सर्विस के विश्लेषकों ने कहा कि बजटीय मजबूती को जारी रखा जाता है, तो भारत का राजकोषीय ढांचा निकट भविष्य में अन्य रेटिंग समकक्षों की तुलना में कमजोर रहेगा। विदेशी निवेशकों ने इस साल अभी तक 2.4 अरब डालर के शेयर बेचे हैं। यह चीन के बाद एशिया में दूसरी सबसे बड़ी निकासी है। म्यूचुअल फंड उद्योग का मानना है कि बजट में आयकर छूट सीमा 50 हजार रुपए बढ़ा कर तीन लाख रुपए की जा सकती है। इससे ग्राहकों के पास निवेश के लिए अतिरिक्त राशि बचेगी।

वित्त मंत्री के सामने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन के अलावा उनके समक्ष बैंकों के पुन: पूंजीकरण भी चुनौती होगी। सूखे और फसल के निचले मूल्य से कृषि क्षेत्र प्रभावित है। ऐसे में सरकार ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर खर्च को जारी रखेगी, फसल बीमा का विस्तार करेगी और सिंचाई परिव्यय बढ़ाएगी।
सुधारों के मोर्चे पर वित्त मंत्री कुछ अन्य क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोल सकते हैं। कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट और अगले एक साल में इनमें बढ़ोतरी की कम संभावना को देखते हुए सरकार आयातित कच्चे तेल, पेट्रोल और डीजल पर सीमा शुल्क को लागू कर सकती है। 2011 में इसे हटा दिया गया था। उस समय कच्चे तेल के दाम बढ़ कर सौ डालर प्रति बैरल पर पहुंच गए थे। पिछले साल के दौरान सोने का आयात बढ़ा है। ऐसे में सरकार सोने पर आयात शुल्क बढ़ा सकती है।