सरकार ने सोमवार (8 अगस्त) को कहा कि राज्य सरकारों ने उन कंपनियों के लिए स्टांप शुल्क में छूट दी है जिन्हें पुन: कोयला ब्लॉक आबंटित किए गए हैं। इसका मकसद खनन का काम जल्द से जल्द शुरू कराना है। सितंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 214 कोयला ब्लॉकों का आबंटन रद्द कर दिया था। राजग सरकार ने ऊंची दरों पर खदानों की नीलामी की थी। लेकिन नए मालिकों ने इसलिए उत्पादन शुरू नहीं किया क्योंकि स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क अधिक होने के कारण लीज डीड को अंजाम नहीं दिया जा सका। कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा, ‘क्योंकि खदानें पुन: वितरित की गर्इं, इसलिए यह सवाल था कि स्टांप शुल्क लागू होगा या नहीं। केंद्र और राज्य सरकारों ने मुद्दे पर चर्चा की। चर्चा के बाद राज्य सरकारों ने स्टांप शुल्क में छूट देने का फैसला किया है ताकि खनन कार्य जल्द शुरू हो सके।’
कांग्रेस नेता दिग्विजिय सिंह ने खनन कार्य में विलंब का मुद्दा उठाया। इस पर मंत्री ने कहा, ‘कई कोयला खदानें मुख्यत: अदालतों में मामलों के चलते नहीं खुलीं। हम अदालती मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। जहां अदालती मामले नहीं हैं वहां खनन कम या ज्यादा शुरू हो चुका है।’ उन्होंने कहा, ‘दो-तीन जगह हैं, जहां राज्यों द्वारा खनन पट्टे दिए जाने बाकी हैं। हम इसके लिए उनके संपर्क में हैं।’ कोयला संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए समन्वय समिति स्थापित करने के सिंह के सुझाव पर गोयल ने कहा, ‘समस्याओं के समाधान के लिए खनन विभाग के तहत पहले से ही एक केंद्रीय समन्वय और अधिकार प्राप्त समिति (सीसीईसी) है।’ उन्होंने कहा कि सीसीईसी की पिछली बैठक पांच अगस्त को हुई थी। इस समिति ने खनन गतिविधि के बारे में चर्चा की। इसलिए अलग से कोई स्वतंत्र फोरम बनाने की आश्यकता नहीं है। मंत्री ने कहा कि एक कोयला परियोजना निगरानी पोर्टल की स्थापना की गई है। हम इसकी नियमित तौर पर निगरानी करते हैं। कोयला आबंटी पोर्टल पर अपनी शिकायतें दर्ज करते हैं। सभी राज्यों के कोयला सचिव और मुख्य सचिव चर्चा करते हैं और उनकी शिकायतों का समाधान करते हैं।’
उन्होंने यह भी कहा कि कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम 1957 को निरस्त करने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है। उक्त अधिनियम के तहत भूमि का अधिग्रहण अधिनियम के सभी प्रावधानों का पालन करते हुए किया जाता है। राज्यों को पंजीकरण और स्टांप शुल्क के कारण राजस्व के किसी नुकसान का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि राज्य सरकारें कोयला कंपनियों द्वारा निकाले गए अथवा उपभोग किए गए कोयले पर रॉयल्टी, अनिवार्य किराया आदि के रूप में राजस्व अर्जित करती हैं। कोयले के लिए रॉयल्टी निर्धारित किए जाने के सवाल पर मंत्री ने कहा, ‘हमें इस पर समिति की कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।’