लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को सैलरी न देने वाली निजी कंपनियों के खिलाफ जुलाई तक कोई ऐक्शन नहीं लिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकारों को कंपनियों और कर्मचारियों के बीच मध्यस्थता करनी चाहिए, जहां सैलरी अदा न की गई हो। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को कंपनियों और कर्मचारियों के बीच विवाद हल कराने चाहिए और फिर मामले की रिपोर्ट लेबर कमिश्नर को सौंपनी चाहिए। कोर्ट ने मामले की सुनवाई की सुनवाई करते हुए कहा कि इंडस्ट्री और लेबर एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है।

इसके साथ ही अदालत ने जुलाई तक कंपनियों के खिलाफ कानूनी ऐक्शन न लिए जाने का आदेश दिया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई भी जुलाई के आखिर तक के लिए टाल दी है। दरअसल प्राइवेट कंपनियों की ओर से लॉकडाउन में भी सैलरी देने के गृह मंत्रालय के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसी पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और एमआर शाह ने यह आदेश दिया। दरअसल गृह मंत्रालय ने इस संबंध में 29 मार्च को आदेश जारी करते हुए कहा था कि लॉकडाउन के दौरान भी कंपनियों को कर्मचारियों को सैलरी देनी होगी।

सरकार के इस आदेश के खिलाफ कंपनियों की ओर से शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की गई थी। इसके बाद कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाने को कहा था। यही नहीं अदालत ने सरकार से पूछा था कि आखिर कंपनियां कर्मचारियों को कितने दिनों तक सैलरी अदा कर सकती हैं। इसके बाद गृह मंत्रालय की ओर से अपने आदेश को वापस ले लिया गया था। गौरतलब है कि लॉकडाउन की शुरुआत से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपील की थी कंपनियों को कर्मचारियों को पूरी सैलरी देनी चाहिए और किसी को भी नौकरी से नहीं निकालना चाहिए।