भारत ने वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों में रूस से 54 लाख टन कच्चे तेल का आयात किया, जिसका मूल्य 2.1 अरब यूरो रहा। यह तेल पहचान छुपाने के मकसद से भ्रामक झंडों के तहत संचालित 30 जहाजों के जरिये भेजा गया था। यूरोपीय शोध संस्थान ‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर’ (सीआरईए) ने गुरुवार को अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
‘भ्रामक झंडे’ का मतलब है कि जहाज अपने असली देश का झंडा न लगाकर किसी दूसरे देश का झंडा लगाकर चलता है, ताकि उसकी पहचान एवं स्वामित्व का पता न चल सके। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस का लगातार बढ़ता हुआ ‘छद्म जहाजी बेड़ा’ अब उसके तेल निर्यात का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
हेलसिंकी स्थित सीआरईए ने कहा कि जनवरी-सितंबर, 2025 के दौरान 113 रूसी जहाजों ने इन गलत झंडों का इस्तेमाल किया, जिनके माध्यम से 1.1 करोड़ टन रूसी कच्चा तेल वैश्विक बाजारों में भेजा गया जिसका कुल मूल्य 4.7 अरब यूरो है।
90 रूसी ‘छद्म’ जहाज़ नकली झंडों के तहत संचालित हो रहे
रिपोर्ट कहती है, “सितंबर 2025 के अंत में 90 रूसी ‘छद्म’ जहाज़ नकली झंडों के तहत संचालित हो रहे थे। यह संख्या दिसंबर 2024 के मुकाबले छह गुना है।”
सीआरईए ने कच्चा तेल लेकर भारत आने वाले जहाजों की संख्या के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इनमें से 30 जहाज भारत तेल लेकर आए। भ्रामक झंडों वाले जहाजों के जरिये भारत को 2.1 अरब यूरो मूल्य का तेल भेजा गया, जो इस श्रेणी में सबसे बड़ा आयात है।
रियायती दरों पर भारत को तेल बेच रहा रूस
रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी, 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय मांग कम होने से भारतीय कंपनियों को रूसी तेल काफी रियायती दरों पर मिलने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूस का हिस्सा कुछ साल में ही एक प्रतिशत से बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत हो गया।
हालांकि सीआरईए ने चेतावनी दी कि झूठे झंडों के तहत चलने वाले जहाज संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि के अनुच्छेद 94 का उल्लंघन करते हैं और कई जहाजों का बीमा भी अमान्य हो जाता है। इस वजह से दुर्घटना या तेल रिसाव की स्थिति में तटीय देशों पर गंभीर पर्यावरणीय खतरा पैदा होता है।
रिपोर्ट के सह-लेखक एवं ऊर्जा विश्लेषक ल्यूक विकेंडन ने कहा, “छद्म झंडों के तहत संचालित होने वाले पुराने और गैर-भरोसेमंद टैंकरों की बढ़ती संख्या यूरोपीय जलक्षेत्रों के लिए बढ़ता जोखिम हैं।” रिपोर्ट के सह-लेखक वैभव रघुनंदन ने इस समस्या पर काबू पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि ऐसे जहाजों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
