रिपब्लिक टीवी समेत तीन चैनलों पर फर्जी तरीके से टीआरपी बटोरने का आरोप लगाते हुए मुंबई पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने इस मामले में रिपब्लिक टीवी एवं अन्य चैनलों पर टीआरपी मीटरों से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया है। पुलिस का कहना है कि इन चैनलों ने मीटर लगाने वाली कंपनियों के कर्मचारियों से सांठगांठ की थी। यहां तक कि कुछ दर्शकों को रुपयों का लालच देकर कहा गया था कि वे एक ही चैनल को दिन भर चलाए रखें। टेलीविजन चैनलों की टीआरपी से यूं तो दर्शकों का सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इससे चैनलों की कमाई पर जरूर सीधा असर पड़ता है। आइए जानते हैं, क्या है टीआरपी और इससे कैसे चैनलों के कारोबार पर पड़ता है असर…

क्या है TRP का सिस्टम: टेलीविजन रेटिंग पॉइंट (TRP) वह व्यवस्था है, जिसके जरिए यह पता लगाया जाता है कि टीवी चैनलों पर आ रहे किन प्रोग्राम्स को ज्यादा लोग देख रहे हैं। इसके आधार पर चैनलों और उनके कार्यक्रमों की रेटिंग तैयार होती है। टीआरपी को मापने के लिए कुछ हजार टीवी सेट्स के साथ मीटर सेट कर दिए जाते हैं और उनके माध्यम से यह देखा जाता है कि किस चैनल और उसके किस प्रोग्राम पर दर्शक सबसे ज्यादा वक्त गुजार रहे हैं।

TRP मापने का तरीका: मीटरों से हासिल डाटा यूं तो कुछ हजार दर्शकों का ही सैंपल होता है, लेकिन इसे पूरे दर्शक वर्ग पर लागू किया जाता है। किसी एक दिन में दर्शकों ने किस चैनल पर कितना वक्त बिताया और किस कार्यक्रम को कितना वक्त दिया, इसका डाटा जुटाया जाता है। 30 दिन के डाटा के आधार पर टीआरपी का औसत निकाला जाता है और हर महीने टीवी चैनलों की टीआरपी जारी की जाती है। टीआरपी का यह डाटा ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल इंडिया की ओर से तैयार किया जाता है।

यूं बिजनेस में मिलती है मदद: किसी भी चैनल को टीआरपी के जरिए विज्ञापन लाने में मदद मिलती है। टीआरपी के आंकड़ों के जरिए टीवी चैनल अपने कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन के रेट तय करते हैं। ऐसे कार्यक्रमों में प्रसारित होने वाले ऐड के रेट ज्यादा लिए जाते हैं, जिनकी टीआरपी अधिक होती है। इस तरह टीआरपी का सीधा असर टीवी चैनलों के कारोबार पर भी पड़ता है।