मुकेश अंबानी का एक सपना था कि भारत जैसे देश में सभी के हाथों में स्मार्टफोन हो, जिसके साथ देश के स्मार्टफोन मार्केट में अपना वर्चस्व स्थापित कर सकें। इसके लिए उन्होंने पिछले साल गूगल के साथ टाईअप किया। काम भी शुरू हो गया, लेकिन कोरोना की की दूसरी लहर मुकेश अंबानी के इस सपने को तोड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। कारण वैसे तो कई हैं, लेकिन जो अहम हैं वो है सप्लाई चेन में बाधा और कंपोनेंट की बढ़ती कीमतें। जिसका असर प्रोडक्शन पर साफ देखने को मिल रहा है। जानकारों की मानें तो मुकेश अंबानी जो साल में करोड़ों स्मार्टफोन बनाने और उन्हें बेचने का सपना देख रहे थे वो अब धुंधला पड़ गया है। अब वो एक छोटे से हिस्से के साथ शुरुआत करने का मन बना रहे हैं।
24 जून को हटेगा स्मार्टफोन से पर्दा : जानकारी के अनुसार गूगल के साथ बनाए जा रहे स्मार्टफोन की लांचिंग रिलायंस के एजीएम वाले दिन यानी 24 जून को की जा सकती है। जिसके बाद बाजार में इसे अगस्त या सितंबर में उतारा जा सकता है। वास्तव में मुकेश अंबानी वायरलेस मोबाइल सर्विस में धाक जमाने के बाद स्मार्टफोन मार्केट में मोनोपॉली स्थापित करने की फिराक में है। मुकेश अंबानी इस बात को पहले ही कह चुके हैं कि वो देश के लोगों के लिए सस्ते दामों पर स्मार्टफोन तैयार किए जाएं।
चीन से मिल रही है बड़ी चुनौती : वहीं दूसरी ओर मुकेश अंबानी को चीन की कंपनियों से बड़ा मुकाबला झेलना पड़ रहा है। शाओमी, ओप्पो, वीवो, वनप्लस का जादू भारतीय स्मार्टफोन बाजार पर सिर चढ़कर बोल रहा है। यह कंपनियां भी उसी कंज्यूमर बेस को टारगेट कर रही हैं जो आज भी टू जी से थ्रीजी में अपग्रेड कर रहा है। ऐसे में रिलायंस को अपने स्मार्टफोन को स्थापित करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
मोबाइल की खासियत : रिलायंस और गूगल के सहयोग से तैयार हो रहे स्मार्टफोन को टेक स्तर पर काफी स्ट्रांग बनाने की कोशिश की जा रही है। वहीं भारत में लोगों को कम कीमत पर प्रोडक्ट खरीदना पसंद है। ऐसे में दोनों कंपनियों की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होगी यह वक्त ही बताएगा। फोन में एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का यूज किया गया है। कंपनी की ओर से कोशिश की गई है कि कस्टमर्स बेहतरीन अनुभव दिया जाए वो भी कम कीमत के साथ। यह तभी संभव है जब फोन को बनाने का मटीरियल सस्ता हो।
क्या गूगल-रिलायंस में नहीं बन रही बांडिंग : वहीं दूसरी आउेर गूगल और रिलायंस के बीच बांडिंग में भी कमी देखने को मिल रही है। इसका कारण है दोनों कंपनियों में काम करने और नजरिए का फर्क। जिसकी वजह से फैसले लेने में देरी भी है। वैसे गूगल जैसी कंपनी अपने फैसले एडवांस में लेने के लिए जानी जाती है। रिलायंस के साथ डील होने के बाद गूगल का वैसा रुख देने को अभी तक नहीं मिला है।