उद्योग विशेष को रियायत देने की नीति का कड़ा विरोध करते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि किसी उद्योगा के ‘प्रोत्साहित’ करना उसे खत्म करने का पक्का इंतजाम करने के समान है इस लिए नीतिनिर्माताओं को किसी व्यवसाय की दिशा तय करने से बचना चाहिए। राजन ने सरकार से ‘कुछ करने’ की बार-बार की रट की भी आलोचना की है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने वस्तु निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रुपए की विनिमय दर घटाने की मांग का उल्लेख किया और कहा कि यह जरूरी नहीं है कि भारत के व्यापार नरमी मुद्रा की विनिमय दर की वजह से ही हो।

वृहत्-आर्थिक मुद्दों पर अपनी बेलाग टिप्पणियों के लिए जाने वाले राजन ने एक लेख में कहा है कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं मांग को प्रोत्साहित करने के लिए आक्रामक मौद्रिक नीतियों के जरिए भारत जैसी उभरती बाजार व्यवस्थओं के लिए जोखिम पैदा कर रही हैं। उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर एक दिन हम पूंजी प्रवाह में तेजी देखते हैं क्योंकि निवेशक जोखिम लेने में रुचि दिखाते हैं और दूसरे दिन निकासी होती है क्योंकि उन्हें जोखिम लेना नहीं चाहते।’’

राजन ने कहा, ‘‘मुझसे हमेशा पूछा जाता है कि हमें किन उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। मैं कहूंगा कि किसी उद्योग को प्रोत्साहित करना इसे खत्म करने का सबसे अचूक तरीका है। नीति निर्माता के तौर पर हमारा काम है कारोबार गतिविधियों को अनुकूल बनाना न कि इसी दिशा तय करना।’’ अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के पूर्व अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘भारत वृहत्-आर्थिक स्थिरता के लिए घरेलू मंच तैयार करने की कोशिश कर रहा है ताकि वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके और बाह्य उतार-चढ़ाव से अपने बाजारों की रक्षा हो।’’

राजन ने कहा कि भारत ने वैश्विक वृद्धि की प्रतिकूल परिस्थितियों और लगातार दो साल के सूखे के बावजूद सात प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जबकि इससे पहले इनमें से एक भी वजह अर्थव्यवस्था को गर्त में पहुंचा सकती थी। उन्होंने कहा, ‘‘इस बुनिया को मजबूत करने की जरूरत है और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के और अधिक प्रतिस्पर्धी होने तथा चीन के मूल्य श्रृंखला में आगे बढ़ने के बीच देश के भीतर और काम करने की जरूरत है। इन सभी वजहों से वस्तु एवं सेवा क्षेत्र में भारतीय कारोबार में दहाई अंक की वृद्धि जल्दी नहीं लौटेगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं अपने जिंस निर्यात का भाव कम होने से प्रभावित हुई हैं लेकिन भारत का वस्तु निर्यात का प्रदर्शन हाल के समय में उन उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले खराब रहा है।’’ उन्होंने कहा कि साथ ही भारत के सेवा निर्यात का स्तर अपेक्षाकृत बेहतर है, शायद अमेरिकी से मांग बढ़ने के कारण। केंब्रिज विश्वविद्यालय समेत ब्रिटेन में हाल में कई संस्थानों में व्याख्यान के लिए यहां आए राजन ने कहा कि भारत अकेला देश नहीं है जो निर्यात में नरमी से जूझ रहा है पर उद्योग संगठन है कि सरकार से कुछ करने की मांग करने और इसमें भी रुपए की विनियम दर में कमी की मांग किए बिना रह नहीं पाते।’

साल 2015 की शुरुआत से रुपए की विनिमय में करीब छह प्रतिशत की कमी आई है लेकिन इससे भारत के वस्तु निर्यात को कोई ज्यादा मदद नहीं मिली है क्योंकि अन्य मुद्राओं में नरमी आई है। उन्होंने कहा कि भारत मुद्रास्फीति अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा है, हालांकि विनिमय दर प्रतिस्पर्धात्मकता का एक पैमाना भर है। राजन ने अपने लेख में कहा, ‘‘उत्पादकता भी महत्वपूर्ण है। अमीर देश में कंपनियां खास तौर से नवोन्मेष के जरिए उत्पादकता बढ़ा सकती हैं। भारत में उत्पादकता सिर्फ फैक्ट्री से रेलमार्ग तक बेहतर सड़क बना कर भी सरलता से बढ़ सकती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत के लिए आदर्श विनिमय दर है वह है जो न यह बहुत मजबूत हो न कमजोर लेकिन यह ‘आदर्श दर’ है जो बाजार तत्व ही पैदा करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि आरबीआई दीर्घकालिक पूंजी प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करता है और केवल अन्य मुद्राओं के मुकाबले रुपए की चाल को ठीक रखने के लिए हस्तक्षेप करता है। राजन ने कहा, ‘‘ऐसा व्यवस्थित बाजार सुनिश्चित करने के लिए अच्छे वक्त में हमें अल्पकालिक विदेशी मुद्रा वाले रिण के लिए बाजार को बहुत अधिक खोलने के लालच पर लगाम लगानी चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे नियम अब बुनियादी ढांचे और अन्य परियोजनाओं में निवेशकों को मसाला बांड (जिसके जरिए भारतीय कंपनियां विदेश से रुपए में रिण जुटा सकती हैं) के जारी धन जुटाने को प्रोत्साहित करते हैं जिसमें सीमित विदेशी मुद्रा जुड़ी होती है या फिर दीर्घकालिक विदेशी रिण के लिए… इस तरह जब विनिमय दर उनके प्रतिकूल जा रही होती है तो उनका जोखिम कम बढता है।’’