प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद का हिस्सा रहे वरिष्ठ अर्थशास्त्री सुरजीत एस. भल्ला ने रोजगार के नए अवसरों को लेकर चौंकाने वाला विश्लेषण पेश किया है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखे लेख में उन्होंने NSSO के आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण कर बताया है कि देश को सालाना 1 करोड़ या उससे ज्यादा नहीं, बल्कि 46 लाख रोजगार के नए मौकों की जरूरत है। सुरजीत भल्ला ने अपने लेख में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के उस आकलन का भी उल्लेख किया, जिसमें जानेमाने अर्थशास्त्री ने सभी को रोजगार देने के वास्ते प्रतिवर्ष 12 मिलियन (1.20 करोड़) नए मौके सृजन करने की बात कही थी। रघुराम राजन ने वर्क फोर्स (काम करने लायक) में सालाना शामिल होने वाले लोगों के आधार पर रोजगार के नए मौके सृजन करने की बात कही थी। इससे पहले वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान सालाना 1 करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात जोर-शोर से कही गई थी। लोकसभा चुनाव की तिथि करीब आने पर एक बार फिर से रोजगार का मुद्दा गर्माने लगा है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसको लेकर मोदी सरकार पर लगातार हमले भी कर रही है। हाल में ही पांच राज्यों में संपन्न विधानसभा चुनावों में भी रोजगार का मुद्दा उठा था।

एनएसएसओ के आंकड़ों का हवाला: न्यूयॉर्क स्थित ‘द ऑब्जर्वेटरी ग्रुप’ नामक संस्था से जुड़े सुरजीत भल्ला ने एनएसएसओ के आंकड़ों का हवाला देते हुए रोजगार के मौकों को लेकर नया आंकड़ा पेश किया है। उन्होंने लिखा कि वर्ष 2011-12 से साल 2017-18 के बीच रोजगार के नए मौकों के सृजन में कमी की कई वजहें रही हैं। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वैश्विक जीडीपी की दर में कमी को बड़ा कारण बताया। भल्ला ने एनएसएसओ के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2004-05 से साल 2011-12 के बीच आबादी में 1.5 करोड़ से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई। उनके मुताबिक, रघुराम राजन की बात को मानने की स्थिति में 75 फीसद लोगों को नौकरी मिलनी चाहिए थी। भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ है। सुरजीत भल्ला की मानें तो बांग्लादेश, चीन, थाईलैंड और नेपाल जैसे देशों में आबादी के इतने बड़े हिस्से को रोजगार मिला है। वर्ष 2011-12 और वर्ष 2016-17 की अवधि में केवल 46 लाख नौकरियों की ही जरूरत थी। साल 1983 के बाद वर्ष 1993-94 और साल 2004-05 में रोजगार के सबसे ज्यादा मौकों (तकरीबन 86 लाख) की जरूरत थी।
वर्ष 2011-18 के बीच 2.80 करोड़ नौकरियों की थी जरूरत: सुरजीत भल्ला ने अपने विश्लेषण के आधार पर बताया कि वर्ष 2011-12 और साल 2017-18 के बीच 46 लाख प्रतिवर्ष के हिसाब से नौकरियों के अवसर का सृजन करने की जरूरत थी। लिहाजा, इन 6 वर्षों के दौरान कुल 2.80 करोड़ नौकरियों के सृजन की आवश्यकता थी। भल्ला ने अपने विश्लेषण के आधार पर बताया कि यूपीए के शासन के 7 वर्षों के दौरान (2004-11) सालाना रोजगार के औसतन महज 14 लाख नए मौके ही सृजित किए गए। हालांकि, इस अवधि में जीडीपी की दर काफी ऊंची थी।