दुनिया भर में रूस यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल के दामों में तेजी आई है। कच्चे तेल के दामों में तेजी का नकारात्मक प्रभाव तेल आयात करने वाले देशों पर पड़ रहा है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से अधिक तेल आयात करता है। ऐसे में तेल की कीमतें बढ़ने का सीधा प्रभाव भारत पर पड़ता है। इस दौरान दुनिया में भारत शायद एकमात्र तेल आयातक देश होगा जहां पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने के बावजूद भी में वृद्धि नहीं की गई है।
चुनाव की वजह से नहीं बढ़ी कीमतें: भारत में 4 नवंबर को आखरी बार पेट्रोल डीजल की कीमत में वृद्धि हुई थी। माना जाता है कि 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने के चलते सरकार ने कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि नहीं की है। इस दौरान दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों में 40 फ़ीसदी तक की तेजी हुई है। ऐसे में चुनाव खत्म होने के बाद देश में पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ना तय माना जा रहा है।
रॉयटर्स ने एक बड़े वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के हवाले से खबर दी है कि “7 मार्च को चुनाव समाप्त होने के बाद तेल कंपनियां चरणबद्ध तरीके से कीमतें बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होंगी”।
इसके साथ ही दूसरे वरिष्ठ अधिकारी की तरफ से बताया गया है कि सरकारी तेल कंपनियों ने सरकार से कहा है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 10 से 12 रुपए प्रति लीटर वृद्धि की आवश्यकता है। जबकि तेल कंपनियों के एक अधिकारी ने कहा है कि हमे बड़ा नुकसान हो रहा है।
बढ़ेगी महंगाई: अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि पेट्रोल डीजल के दामों में 10 फीसदी तक की तेजी आती है, तो महंगाई में 50 से 60 आधार अंक की वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही लोग जरूरत की चीजों और महंगी लग्जरी उत्पादों पर खर्च करना भी कम कर देंगे। जनवरी में खुदरा महंगाई दर 6.01 फीसदी पर पहुंच गई थी। ऐसे में पेट्रोल डीजल की कीमतों में इजाफा होने के बाद महंगाई में बढ़त देखने को मिल सकती है।
युद्ध के बाद बढ़ी महंगाई: 24 फरवरी को रूस यूक्रेन युद्ध के बाद महंगाई में वृद्धि हुई है। कच्चे तेल 2014 के बाद अपने सबसे उच्चतम स्तर 116 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गया है। दूसरी तरफ कॉपर, एलमुनियम, स्टील के दामों में भी तेजी देखने को मिली है।