म्यूचुअल फंड्स और इक्विटी शेयरों के लॉन्ग टर्म इंवेसमेंट पर लगने वाला लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स फिलहाल खत्म नहीं होने वाला। संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने मंगलवार को बताया कि, सरकार फिलहाल लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को खत्म नहीं करेगी। इसके साथ ही म्यूचुअल फंड और इक्विटी के लिए लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स की अवधि को एक साल से बढ़ाकर दो साल करने का भी कोई विचार नहीं है। आइए जानते हैं आखिर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स क्या है और सरकार की इस टैक्स से सालाना कितनी आमदनी होती है।
लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स – लिस्टेड इक्विटी शेयरों को बेचने पर मिलने वाले लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस को अप्रैल 2018 में टैक्स के दायरे में लाया गया था। अगर किसी निवेशक ने किसी कंपनी के शेयर को एक साल या उससे अधिक समय तक होल्ड किया है, तो उसे लॉन्ग-टर्म माना जाएगा।
लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स, लिस्टेड कंपनियों के शेयरों को बेचने पर मिलने वाले मुनाफे को कहते हैं। इक्विटी में निवेश पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स भी लगता है। इसे 12 महीने से कम अवधि में बेचे जाने वाले शेयरों पर 15 पर्सेंट की दर से लगाया जाता है। अप्रैल 2018 से पहले शेयरों में निवेश से मिलने वाले लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स नहीं लगता था।
2018 से अब तक सरकार की इतनी हुई कमाई – सरकार ने 2018-19 से 2020-21 तक LTCG टैक्स से मिली रेवेन्यू की जानकारी दी है। सरकार ने बताया कि असेसमेंट ईयर 2018-19 में उसने LTCG टैक्स 1,222 करोड़ रुपये कमाए थे। इसी तरह असेसमेंट ईयर 2019-20 और 2020-21 में 3,460 करोड़ रुपये और 5,311 करोड़ रुपये कमाए हैं।
लॉन्ग टर्म और शार्ट टर्म के अलावा ये टैक्स भी लगता है – स्टॉक एक्सचेंज में बेचे और खरीदे जाने वाले शेयरों पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स यानी STT लगता है। जब भी शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-फरोख्त होती है, इस पर यह टैक्स देना पड़ता है। शेयरों की बिक्री पर सेलर को 0.025 फीसदी टैक्स देना पड़ता है। यह टैक्स शेयरों के बिक्री मूल्य पर देना पड़ता है। डिलीवरी बेस्ड शेयरों या इक्विटी म्यूचुअल फंड की यूनिट्स की बिक्री पर 0.001 फीसदी की दर से टैक्स लगता है।
