संसद की एक समिति ने विदेश मंत्रालय को कोष जारी करने में देरी और अपर्याप्त राशि देने को लेकर वित्त मंत्रालय की खिंचाई की है। समिति का कहना है कि इससे विभिन्न देशों में विकास परियोजनाओं का काम प्रभावित हुआ और देश की विश्वसनीयता व प्रतिबद्धता पर उंगलियां उठीं।
विदेश मंत्रालय (एमईए) की स्थायी समिति ने कहा है कि सरकार के शीर्ष स्तर से की गई प्रतिबद्धओं को निभाने के लिए एमईए को पर्याप्त धन न देने से भारत की विदेश नीति के उद्देश्य प्रभावित हो सकते हैं। समिति ने मंत्रालय के समक्ष विशाल कार्य और चुनौतियों को देखते हुए भारतीय विदेश सेवा का छोटा आकार रखना अटपटी और चिंताजनक बात है। अपनी इन टिप्पणियों के संदर्भ में समिति ने भारत की ओर से अफगानिस्तान में संसद की इमारत के निर्माण में देरी का जिक्र किया। इसका कारण इस परियोजना से जुड़ी एजंसियों के पास धन की कमी है।
समिति ने अपनी चौथी रिपोर्ट में कहा है कि मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ उच्च राजनीतिक स्तर पर जताई गई प्रतिबद्धता भारत की विदेश नीति का अभिन्न हिस्सा है। वित्त मंत्रालय के लिए ऐसे फैसलों का सम्मान करना और इस तरह की प्रतिबद्धताओं के लिए कोष उपलब्ध कराना अनिवार्य होना चाहिए। भारत की अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं और सहायता कार्यक्रम की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए कोष समय पर जारी सुनिश्चित करने के लिए समिति ने अलग कोष बनाने का सुझाव दिया है।
पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश रिपोर्ट में विदेश मंत्रालय में संसाधन की कमी का जिक्र करते हुए समिति ने कहा कि 2014-15 में मंत्रालय ने 26,111 करोड़ रुपए मांगा था जबकि उसे 5,100 करोड़ रुपए के योजनागत व्यय के साथ 14,730 करोड़ रुपए ही दिए गए। आइएफएस (भारतीय विदेश सेवा) के छोटे आकार का जिक्र करते हुए समिति ने कहा कि विदेश सेवा अधिकारियों का काम चुनौतीपूर्ण और अनिवार्य है लेकिन मंत्रालय के पास उसके समाधान के लिए राजनयिकों की कमी है।

