ओयो रूम्स के संस्थापक और सीईओ रितेश अग्रवाल की सफलता के पीछे उनकी किस्मत ही नहीं, संघर्ष का भी बहुत बड़ा योगदान है। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, दरअसल एकबार मीडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों की दास्तां बयां की थी। ईटी को दिए एक इंटरव्यू में रितेश ने बताया था कि जब वह गुड़गांव में पहला होटल चला रहे थे तब वह हाउसकीपिंग, सेल्स और सीईओ की ड्यूटी समेत कई काम देख रहे थे। रितेश अग्रवाल ने बताया था, ”मैं हाउसकीपिंग के लिए सचमुच ओयो रूम्स की यूनीफॉर्म पहनता था और ग्राहकों को कमरे दिखाता था। कभी कभार कपल्स मुझे कहते थे- अबे निकल जा रूम से, हमें कुछ करना है। मैं आम तौर पर लोगों से अच्छे से पेश आता था इसलिए मुझे टिप्स भी मिल जाती थी। एकबार एक परिवार ने मुझे बच्चा संभालने के लिए कहा। और शुक्र है, बच्चा मेरे साथ चुप था। परिवार बेहद खुश था इसलिए मुझे 50 रुपये दिए। मुझे लोगों ने अपने घरों में भी काम करने के ऑफर दिए हैं।”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ओयो रूम के चीफ रितेश अग्रवाल का हर रात नए कमरे में चेक इन करते थे, यह उनके पेशे का हिस्सा था। रितेश ने कहा था कि ऐसा करने से उन्हें ग्राहकों और होटल मालिकों की उस नब्ज का पता चलता है जिससे वह जान पाते थे कि वे क्या चाहते हैं। उन्होंने एक दिलचस्प वजह यह भी बताई थी कि होटल के कमरों में ठहरने के कारण उन्हें घर को नहीं सहेजना पड़ता था।
रितेश अग्रवाल की सफलता अपने आप में एक ऐसा उदाहरण हैं, जो यह साबित करता है कि सपनों को पूरा करने के लिए जरूरी नहीं कि आप किसी बड़े कॉलेज और यूनिवर्सिटी में गए हों, जरूरी यह है कि जो भी शिक्षा आपने हासिल की है उसका इस्तेमाल आप किस प्रकार करते हैं। यही वजह रही कि कुछ ही वर्षों पहले ओडिशा में एक छोटे से कस्बे में सिम कार्ड बेचने वाले रितेश आज उस मुकाम पर हैं कि दुनिया के सबसे बड़े निवेशकों में से एक सॉफ्टबैंक के मासायोशी सोन उनके साथ पार्टनरशिप करना चाहते हैं।