सरकार ने रविवार को स्पष्ट किया कि परमाणु दुर्घटना से जुड़े नागरिक दायित्व कानून में संशोधन नहीं किया जाएगा। इस मामले में अमेरिका के साथ हाल में बनी सहमति का विवरण जारी करते हुए सरकार ने कहा है कि इस कानून के तहत देश को परमाणु रिएक्टर आपूर्तिकर्ता विदेशी कंपनियों पर परमाणु दुर्घटना में प्रभावित व्यक्तियों द्वारा क्षतिपूर्ति का दावा नहीं किया जा सकता। परमाणु दुघर्टना के संबंध में सिविल दायित्व, क्षतिपूर्ति और दावे के विषय में विदेश मंत्रालय ने सात पृष्ठों की व्याख्या प्रस्तुत की है। जिसमें इस विषय में ‘प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्नों’ का निवारण किया गया है।

विदेश मंत्रालय ने कहा है कि देश के परमाणु क्षति संबंधी सिविल दायित्व अधिनियम (सीएलएनडी) में संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं है। इसमें कहा गया है कि परमाणु रिएक्टरों की आपूर्ति करने वाली विदेशी कंपनियों पर परमाणु दुर्घटना में प्रभावित लोगों द्वारा क्षतिपूर्ति के लिए दावा नहीं किया जा सकता। हालांकि परमाणु रिएक्टरों की परिचालक कंपनियां को ऐसे विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर इस कानून के तहत दावा करने का अधिकार है जो संबंधित परमाणु बिजली घर के अधिकार परिचालक व संयंत्र आपूर्तिकर्ता के बीच अनुबंध के जरिए प्रभावी बनाया जा सकता है।

मंत्रालय ने कहा कि इस मामले में नीतिगत अड़चनों को सुलझाने के लिए भारत-अमेरिका परमाणु संपर्क समूह के बीच तीन दौर की बातचीत के बाद सहमति बनी। इसकी अंतिम बैठक अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से तीन दिन पहले लंदन में हुई थी। ओबामा 25 जनवरी को भारत पहुंचे थे। मंत्रालय ने कहा कि इन चर्चाओं के बाद अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु सहयोग के दो लंबित मुद्दों पर समझ बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व बराक ओबामा ने 25 जनवरी 2015 को इसकी पुष्टि की।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि देश का परमाणु क्षति संबंधी सिविल दायित्व अधिनियम सभी कानूनी दायित्वों को विशिष्ट रूप से परिचालक कंपनी के पास भेजता है। घरेलू व विदेशी आपूर्तिकर्ताओं ने धारा 46 के व्यापक दायरे पर चिंता जताई थी। उन्हें आशंका थी कि इसके तहत अन्य कानूनों के तहत दावे की कार्रवाई की जा सकती है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि परमाणु दुर्घटना के लिए मुआवजे के लिए अन्य कानूनों के आधार दावे के लिए इस बिंदु को आधार नहीं बनाया जा सकता। भारत ने शुक्रवार को इस बारे में आश्वासन देते हुए अमेरिका को ज्ञापन दिया है।

मंत्रालय ने आगे कहा कि यह धारा विशिष्ट रूप से परिचालक पर लागू होती है। सीएलएनडी कानून को अपनाने के समय कई संसदीय बहसों में यह पुष्टि की गई कि यह आपूर्तिकर्ता पर लागू नहीं होती। इसमें कहा गया है कि सीएलएनडी विधेयक मतदान के बाद अंगीकार किया गया। विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर मतदान के दौरान राज्यसभा में धारा 46 के लिए दो संशोधन आगे बढ़ाए गए। अंत में यह सीएलएनडी कानून की धारा 46 बना। आपूर्तिकर्ताओं को इसमें शामिल करने का प्रावधान था। ये दोनों संशोधन खारिज कर दिए गए।

मंत्रालय ने इस सुझाव को भी खारिज कर दिया कि परिचालक के पास विदेशी आपूर्तिकर्ता के खिलाफ क्षतिपूर्ति के लिए दावा करने का अधिकार नहीं है। मंत्रालय ने कहा कि सीएलएनडी की धारा 17 क्षतिपूर्ति के लिए दावा करने का अधिकार देती है। हालांकि इसमें परिचालक को उल्लेखनीय अधिकार दिया गया है। लेकिन यह अनिवार्य नहीं, बल्कि सहूलियत के लिए किया गया प्रावधान है। जोखिम साझा करने के लिए परिचालक व आपूर्तिकर्ता के बीच इसे अनुबंध में शामिल किया जा सकता है।