नीति आयोग ने कहा है कि भारतीय रेलवे की यात्री सेवा में नुकसान से निपटने के लिये किराये में वृद्धि ही एकमात्र रास्ता नहीं है, इसमें लागत ढांचे में दक्षता की कमी पर भी गौर किये जाने की जरूरत है। नीति निर्माण से जुड़े शीर्ष निकाय ने यह भी सुझाव दिया कि रेलवे को लागत को अनुकूलतम बनाने के उपायों पर काम करना होगा और किराया से इतर राजस्व के अन्य स्रोतों को बढ़ाना होगा। अध्ययन में कहा, ‘‘यात्री सेवा कारोबार में नुकसान में लागत ढांचे में रेलवे की अकुशलता का भी योगदान है और ऐसी स्थिति में इस सामाजिक लागत को पूरा करने के लिये किराये में वृद्धि एकमात्र उपाय नहीं हो सकता।’’ ‘भारतीय रेलवे द्वारा सामाजिक सेवा दायित्व का प्रभाव’ शीर्षक से तैयार रिपोर्ट में नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय और विशेष कार्याधिकारी किशोर देसाई ने तैयार की। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार यात्री सेवा कारोबार में नुकसान को अनिवार्य रूप से लागत को अनुकूलतम बनाकर किया जाना चाहिए और किराये से इतर राजस्व बढ़ाने के लिये रणनीति बनानी चाहिए।
वर्ष 2014-15 के आंकड़े के अनुसार कुल सामाजिक सेवा बाध्यता लागत में गैर-उपनगरीय सेवा (सभी श्रेणी में….एसी, स्लीपर, सेकेंड क्लास आदि) का योगदान करीब 73 प्रतिशत था। अध्ययन के अनुसार भारतीय रेलवे का अनुमान है कि गैर-उपनगरीय सेवाओं में कम किराये से घाटा करीब 28,000 करोड़ है जबकि समीक्षा से संकेत मिलता है प्रतिस्पर्धी बाजार तत्वों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त तरीके से यह 22,000 करोड़ रुपये हो सकता है। इसमें कहा गया है कि एसी क्लास में औसत किराया का स्तर एसी बस सेवा से अधिक है।
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अध्ययन में कहा गया है, ‘‘इसीलिए एसी क्लास में घाटे का कारण भारतीय रेलवे का उच्च आधार वाला लागत ढांचा है न कि इसका किराये का कमजोर ढांचा।’’ इसमें सुझाव दिया गया है कि अत: इसको देखते हुए भारतीय रेलवे को लागत को अनुकलतम बनाने के लिये वैकल्पिक उपायों पर गौर करने की जरूरत है। साथ ही घाटे की भरपाई के लिये खर्च नियंत्रण रणनीति अपनाने की जरूरत है। आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी संकेत मिलता है कि इन श्रेणियों में करीब 80 प्रतिशत घाटा किराये के निम्न स्तर की वजह से है जबकि शेष 20 प्रतिशत संभवत: रेलवे के लागत ढांचा से संबंधित है।
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