वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह नए इनकम टैक्स बिल के पुराने वर्जन को वापस ले लिया था। कल यानी 11 अगस्त, सोमवार को Income-Tax (No.2) Bill, 2025 का संशोधित वर्जन और Taxation Laws (Amendment) Bill, 2025 लोकसभा में पास कर दिया गया। इस बिल के पास होने के साथ ही इनकम-टैक्स एक्ट, 1961 और फाइनेंस एक्टस, 2025 (Finance Act, 2025) में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। सरकार ने सेलेक्ट कमेटी की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। सेलेक्ट कमेटी का अध्यक्षता बीजेपी नेता बैजयंत पांडा कर रहे थे और उन्होंने 624 पन्ने वाले अपडेटेड इनकम टैक्स बिल में कई सुधारों की सलाह दी थी। इनमें LLPs व धार्मिक-सह-धर्मार्थ ट्रस्टों को मिलने वाले गुमनाम दान सहित कई खामियां शामिल हैं।
Taxation Laws (Amendment) Bill, 2025 में किए गए बड़े बदलावों की बात करें तो वित्त अधिनियम, 2025 (Finance Act, 2025) में संशोधन करने की मांग की गई थी, जिसमें ‘सऊदी अरब साम्राज्य की सरकार के सार्वजनिक निवेश कोष (Public Investment Fund)’ और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों को शामिल किया गया था, जो आयकर अधिनियम के खंड (23FE) में फंड से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निवेश करते हैं।
अभी मौजूदा वक्त में सऊदी के सार्वजनिक निवेश कोष ( Public Investment Fund) सहित कई संप्रभु धन निधियों (sovereign wealth funds) को इनकम टैक्स में छूट दी गई है, जिसके मैनेजमेंट के तहत $925 बिलियन से ज्यादा की संपत्ति है और नवंबर 2022 में आई-टी छूट के लिए अधिसूचित किया गया था। हालांकि, फंड को विभिन्न सहायक कंपनियों के माध्यम से निवेश से संबंधित कुछ प्रतिबंधात्मक मानदंडों का सामना करना पड़ा था। इस संशोधन के साथ, सरकार ने अधिनियम में स्पष्ट रूप से इसका नाम निर्दिष्ट करके सऊदी के फंड को पूरी तरह से आयकर छूट दी है जैसा कि पहले Abu Dhabi Investment Authority (ADIA) के लिए किया गया है।
वित्त अधिनियम, 2020 ( Finance Act, 2020) के अधिनियम की धारा 10 का क्लॉज (23FE) निर्दिष्ट व्यक्तियों को डिविडेंड, ब्याज, लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स या भारत में किए गए निवेश से होने वाली कुछ अन्य आय से छूट देता है। सऊदी के फंड के लिए संशोधन महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह भारत में निवेश के अवसरों का पता लगा सकता है, जिसमें राज्य द्वारा संचालित ONGC और BPCL द्वारा योजना बनाई जा रही दो नई रिफाइनरियों में हिस्सेदारी भी शामिल है।
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Taxation Laws (Amendment) विधेयक ने योजना को और अधिक गति देने के लिए बाजार से जुड़ी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के तहत गारंटीड यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) के तहत आयकर लाभ भी बढ़ा दिया है। किसी व्यक्ति के कामकाजी सालों के दौरान किए गए योगदान से 60 प्रतिशत तक एकमुश्त भुगतान या एक्युमुलेटे़ यूपीएस कॉर्पस को अब सेवानिवृत्ति के समय टैक्स-फ्री निकाला जा सकता है।
डेडलाइन के बाद रिटर्न फाइल करने पर रिफंड
इसके अलावा, Income-Tax (No.2) Bill, 2025 में किए गए बदलावों में सरकार ने डेडलाइन के बाद इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने पर भी व्यक्तियों को टीडीएस रिफंड का दावा करने की अनुमति देने जैसी विसंगतियों को ठीक करने के लिए मसौदे की त्रुटियों को संशोधित किया। इसके अलावा, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप्स (LLPs) के लिए वैकल्पिक न्यूनतम कर (AMT) की लागू होने की शर्तों को आयकर अधिनियम, 1961 के मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप कर दिया गया है। इस बदलाव से पहले विस्तारित दायरा उन LLPs पर भी लागू हो जाता, जो विशेष कर लाभ का दावा नहीं कर रहे थे, जिससे उन पर 12.5% की रियायती दर के बजाय 18.5% की उच्च दर लागू होती।
टैक्स पार्टनर, AKM ग्लोबल के अमित माहेश्वरी का कहना है, “अपडेटेड बिल में सबसे अहम संशोधनों में से एक है धारा 263 में किया गया बदलाव, जो इनकम टैक्स रिफंड का दावा करने की पात्रता से जुड़ा है। मूल ड्राफ्ट में एक प्रावधान—धारा 263(1)(a)(ix)—शामिल था, जिसकी व्याख्या इस तरह की जा सकती थी कि टैक्सपेयर्स केवल तभी रिफंड का दावा कर सकते हैं, जब उनका रिटर्न कानूनी समयसीमा (ड्यू डेट) पर या उससे पहले दाखिल किया गया हो। यह स्थापित कानूनी स्थिति से एक बड़ा बदलाव होता, जिसमें विलंब से दाखिल किए गए रिटर्न पर भी रिफंड का दावा किया जा सकता था। संभावित कठिनाइयों और अस्पष्टता को देखते हुए, नए विधेयक में इस प्रतिबंधात्मक प्रावधान को पूरी तरह हटा दिया गया है।”
जीरो TCS कब होगा लागू?
नए विधेयक में यह भी स्पष्ट किया गया है कि लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत शिक्षा के उद्देश्यों के लिए, जो किसी भी वित्तीय संस्थान द्वारा वित्तपोषित हैं, रेमिटेंस पर शून्य टीसीएस (TCS) लागू होगा। यह प्रावधान पिछले वर्जन में शामिल नहीं था। इसके अलावा, विधेयक ने ऐसे टैक्सपेयर्स को भी अनुमति दी है जिन पर कोई आयकर ड्यू नहीं है, कि वे शून्य-टीडीएस (nil-TDS) प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकें। इसके साथ ही, कुछ इंटर-कारपोरेट डिविडेंड्स पर कटौतियां भी दी गई हैं, जो रियायती दर चुनने वाली कंपनियों के लिए मौजूदा प्रावधानों के अनुरूप हैं।
कब से लागू होगा नया इनकम टैक्स बिल?
सरकार मौजूदा आयकर अधिनियम, 1961 को नए आयकर विधेयक, 2025 के जरिए बदलने की योजना बना रही है, जिसे पहली बार 13 फरवरी, 2025 को संसद में पेश किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य प्रत्यक्ष कराधान की छह दशक पुरानी संरचना को सरल बनाना है, जिसमें प्रावधानों को सुव्यवस्थित करना, अप्रासंगिक संदर्भों को हटाना और एक संक्षिप्त व सरल कानूनी ढांचा तैयार करना शामिल है। नया आयकर विधेयक 1 अप्रैल, 2026 से लागू होने की संभावना है।
कुछ संशोधन ट्रांसफर प्राइसिंग प्रावधानों से जुड़ी अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए किए गए हैं, साथ ही घाटे के आगे ले जाने और समायोजन (carry forward and set-off) से जुड़े बदलाव भी शामिल हैं। लाभकारी स्वामी (beneficial owner) का उल्लेख हटाया गया है, ताकि इसे आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 79 के अनुरूप किया जा सके। साथ ही, हाउस प्रॉपर्टी इनकम की गणना करते समय नगर निगम करों की कटौती के बाद 30 प्रतिशत मानक कटौती की लागूता को स्पष्ट किया गया है।
नांगिया एंडरसन LLP में पार्टनर संदीप झुनझुनवाला ने कहा, “महत्वपूर्ण बदलावों में निर्दिष्ट LRS शिक्षा रेमिटेंस के लिए शून्य TCS (टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स) का समावेश, शून्य-TDS प्रमाणपत्र का प्रावधान, रियायती कर दरें लेने वाली कंपनियों के लिए इंटर-कारपोरेट डिविडेंड कटौतियों की पुनर्बहाली, और घाटे के समायोजन प्रावधानों में लाभकारी स्वामी की शर्त को हटाना शामिल है। ये बदलाव पिछले ड्राफ्ट की प्रमुख कमियों को दूर करते हैं।”
NPOs की छूट में बदलाव
सेलेक्ट कमेटी की सिफारिश है कि नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशंस (NPOs) को गुमनाम दान के केवल 5 प्रतिशत के बजाय कुल दान के 5 प्रतिशत की छूट दी जानी चाहिए, जैसा कि मौजूदा अधिनियम में मामला है, संशोधित विधेयक में शामिल किया गया है। नांगिया एंड कंपनी एलएलपी के पार्टनर सचिन गर्ग ने कहा, “संशोधित बिल में किए गए कई अन्य बदलावों की तरह, यह संशोधन भी मूल बिल में मसौदे की विसंगति को दूर करता है।”
पहले के मसौदे की तरह, नया विधेयक “Tax Year” की अवधारणा पेश करता है, जिसे 1 अप्रैल से शुरू होने वाली 12 महीने की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें “वर्चुअल डिजिटल स्पेस” की विवादास्पद परिभाषा को भी बरकरार रखा गया है – ई-मेल सर्वर, सोशल मीडिया खाते, ऑनलाइन निवेश, व्यापार और बैंकिंग खाते, रिमोट या क्लाउड सर्वर और डिजिटल एप्लिकेशन प्लेटफ़ॉर्म सहित सर्वेक्षण, खोज और जब्ती के दौरान आयकर अधिकारियों द्वारा जानकारी मांगने की शक्तियां। क्लॉज 247 टैक्स अधिकारियों को तलाशी के दौरान पासवर्ड को बायपास करने और ईमेल व सोशल मीडिया जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों तक पहुंचने की अनुमति देता है।
सर्च और सीजर मामलों में ब्लॉक असेसमेंट से जुड़े प्रावधानों को भी सुव्यवस्थित किया गया है, जिसमें अधिकांश बदलाव ‘कुल आय’ (total income) की परिभाषा को ‘कुल अघोषित आय’ (total undisclosed income) से बदलने के लिए किए गए हैं।
माहेश्वरी ने कहा, “जब वित्त अधिनियम, 2024 के माध्यम से सर्च और सीज़र मामलों के लिए ब्लॉक असेसमेंट व्यवस्था लागू की गई थी, तब कर योग्य आधार निर्धारित करने के लिए ‘कुल आय’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। यह व्यापक शब्दावली करदाताओं और पेशेवरों के बीच आशंका पैदा करती थी, क्योंकि इससे यह संकेत मिलता था कि पहले से घोषित आय — यानी रिटर्न में रिपोर्ट की गई या अन्यथा दर्ज की गई आय- भी ब्लॉक असेसमेंट के दायरे में आ सकती है, जिससे सख्त जुर्माने लग सकते हैं। इन चिंताओं को देखते हुए, वित्त अधिनियम, 2025 ने परिभाषा में संशोधन किया और ‘कुल आय’ शब्द को अधिक सटीक शब्द ‘कुल अघोषित आय’ से बदल दिया है।”
उन्होंने आगे बताया, “यह बदलाव स्पष्ट करता है कि सर्च और सीज़र कार्यवाही का प्राथमिक उद्देश्य केवल उसी आय की पहचान करना, टैक्स लगाना और दंडित करना है, जिसे छिपाया गया हो या रिपोर्ट न किया गया हो, न कि पहले से दर्ज की गई आय का पुनर्मूल्यांकन करना। यह बदलाव इनकम टैक्स बिल 2025 के पहले ड्राफ्ट में शामिल नहीं था।”