आम सहमति न बन पाने की वजह से, मंगलवार को शुरू होने जा रहे संसद के मॉनसून सत्र के दौरान भूमि विधेयक को पेश किए जाने की संभावना नहीं है और इससे संबंधित अध्यादेश को अप्रत्याशित रूप से चौथी बार जारी किया जा सकता है। सरकारी सूत्रों ने बताया ‘‘आम सहमति न बन पाने के कारण मॉनसून सत्र के दौरान विधेयक को संसद में पेश किए जाने की संभावना नहीं है।’’
इस विधेयक पर विचार कर रही, भाजपा सांसद एस एस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली, संयुक्त संसदीय समिति की योजना अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए तीन अगस्त तक दो सप्ताह का समय विस्तार और मांगने की है।
संकेत हैं कि समिति मानसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट नहीं दे पाएगी और समय में विस्तार की मांग कर सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए अध्यादेश एक बार फिर जारी करना जरूरी हो जाएगा। तीसरी बार यह अध्यादेश 31 मई को जारी किया गया था।
सूत्रों ने कहा कि समिति के समय में विस्तार इसलिए भी मांगा जा सकता है क्योंकि बिहार में सितंबर अक्तूबर में विधानसभा चुनाव हैं और सरकार इन चुनावों के होने तक संसद के समक्ष विधेयक लाना नहीं चाहती।
सरकार के सूत्रों को भूमि अध्यादेश फिर से जारी करने में कुछ भी असामान्य नहीं लगता। उन्होंने कहा कि कम से कम 15 अध्यादेशों को दो या अधिक बार जारी किया जा चुका है।
एक अध्यादेश की अवधि छह माह होती है। अगर संसद सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के अंदर उसे संसद की मंजूरी नहीं मिलती तो अध्यादेश को फिर से जारी करना होता है। संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो कर 13 अगस्त तक चलेगा।
सरकार का कहना है कि अध्यादेश को उसकी निरंतरता बनाए रखने और अधिगृहित की जा चुकी जमीन के एवज में लोगों को क्षतिपूर्ति का ढांचा मुहैया कराने के लिए पुन:जारी करना जरूरी है। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए भूमि विधेयक का विरोध कर रही कांग्रेस ने 31 मई को अध्यादेश पुन:जारी किए जाने पर केंद्र की जम कर आलोचना की थी।
बहरहाल, सरकार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि संप्रग द्वितीय सहित विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में कम से कम छह अध्यादेशों को तीन तीन बार जारी किया गया था।
सूत्रों के अनुसार, इस बात की संभावना कम ही है कि अपने पांच साल के कार्यकाल में से एक साल पूरा कर चुकी सरकार इस विधेयक को पारित कराने के लिए संयुक्त सत्र की राह पर चलेगी तथा विधेयक को ‘‘बलपूर्वक’’ आगे बढ़ाने के लिए और अधिक आलोचनाओं को आमंत्रित करेगी।
विधेयक पर आम सहमति बनाने के लिए प्रयासरत संयुक्त संसदीय समिति ने पूर्व में अपना कार्यकाल 28 जुलाई तक यानी एक सप्ताह तक बढ़ाने का फैसला किया था। लेकिन उसे यह पर्याप्त नहीं लगा और उसने अपना कार्यकाल तीन अगस्त तक बढ़ाने का फैसला किया।
वास्तव में समिति को 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी।
सूत्रों ने बताया कि सत्र शुरू होने पर समिति को कार्यकाल बढ़ाने के बारे में संसद की मंजूरी लेनी होगी। अब समिति ने दो सप्ताह का सेवा विस्तार मांगने का फैसला किया है।
समिति को अब तक मिलीं 672 प्रस्तुतियों में से 670 ने राजग सरकार द्वारा भूमि विधेयक में किए जा रहे संशोधनों का विरोध किया है। समिति के समक्ष 52 प्रतिनिधि भी पेश हो चुके हैं।