नरेंद्र मोदी सरकार का 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर इंडियन इकॉनमी का सपना खतरे में दिखाई दे रहा है। भारत 2019 में विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है लेकिन वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर धीमी पड़कर 5.8 से 5 प्रतिशत रही गई। विश्व और देश में मौजूदा समय में जो चुनौतियां है वह मोदी के सपने को धूमिल करती हुई नजर आ रही है। आर्थिक सुस्ती से जूझ रहे तमाम सेक्टरों में जान डालने के लिए सरकार ने बीते कुछ दिनों में कई अहम घोषणाएं भी की हैं। इन घोषणाओं में तमाम ऐसे कदम उठाए गए हैं जिससे 5 ट्रिलियन डॉलर इंडियन इकॉनमी का सपना खतरे में पड़ सकता है।
मोदी सरकार इस साल दूसरी बार सत्ता में आई तो स्टॉक मार्केट में जबरदस्त उछाल देखने को मिला था। निवेशकों में एक भरोसे की लहर थी। लेकिन जिस तरह बीते कुछ महीने में आर्थिक मोर्चे पर सरकार को धक्का लगा है उससे कहीं न कहीं निवेशकों में जो भरोसा था वह कम हुआ हुआ है। बहरहाल निर्माल सीतारमण ने शुक्रवार को कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती का एलान किया है। इस एलान के साथ ही सेंसेक्स में 1900 अंक की उछाल देखने को मिली। इसके साथ ही जीएसटी काउंसिल की गोवा में हुई बैठक के बाद कई वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स दर कम कर दी गई है। वहीं बीते बीते दिनों आरबीआई ने रेपो रेट में 0.35 प्रतिशत की कमी की है जिससे ब्याज दर 9 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई।
मौजूदा आर्थिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत है अगर यह आने वाले समय में इससे कम या इससे थोड़ी ज्यादा होती है तो इससे 5 ट्रिलियन इकॉनमी का सपना पूरा नहीं हो सकता। अगर भारत को 5 ट्रिलियन इकॉनमी बनना है तो आर्थिक वृद्धि दर कम से कम 8 प्रतिशत होनी चाहिए। इसी मुद्दे पर अर्थशास्त्री अभिषेक गुप्ता ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया ‘मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में दिवालिया कानून से बैंकिंग सिस्टम दुरुस्त हुआ और जीएसटी से टैक्स की नई व्यवस्था आई इससे आर्थिक वृद्धि दर में उछाल आया। अब उम्मीद है कि 2025 तक यह 8.5 प्रतिशत हो जाए।
सिलिकॉन वैली में कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में प्रोफेसर विवेक वाधवा ने कहा ‘लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार को बड़े स्तर पर रिफॉर्म करना होगा। सरकार को नियमों में भारी बदलाव करने होंगे। इसके साथ ही श्रम कानूनों को सुव्यवस्थित करना, राज्य संस्थाओं का निजीकरण, बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा।’
ऑयल प्राइस: सऊदी अरब में जिस तरह तेल टैंकर पर हमला किया गया उसके बाद देशों के बीच जारी ट्रेड वॉर एक नए स्तर पर पहुंच गया है। हमले के बाद सऊदी ने तेल की सप्लाई को रोक दिया जिसका असर भारत समेत पूरे विश्व पर पड़ा। तेल के दाम में इजाफा हुआ। इस घटना के बाद भारत के लिए भी खतरे की घंटी बज गई, क्योंकि देश अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा सऊदी अरब से आयात करता है। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि यह विवाद लंबे समय तक न चले।
टैक्स में कटौती: सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स कटौती को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया। बताया जा रहा है कि इस छूट से सरकारी खजाने पर सालाना 1.45 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। हालांकि सरकार ने नई कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स 17 प्रतिशत (सेस मिलाकर) कर दिया है। इससे अमेरिका चीन ट्रेड वॉर का फायदा भारत को मिल सकता है। कई विदेशी कंपनियां अब भारत में निवेश कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो हजारों नौकरियां पैदा होगीं और रोजगार की समस्या कम होगी। लेकिन सरकार को टैक्स कलेक्शन का जो भारी नुकसान होगा उससे 5 ट्रिलियन डॉलर इंडियन इकॉनमी का सपना पूरा करना एक चुनौती होगी।