जगह-जगह फैला कचरा और खुले में शौच बीमारी को बुलावा देने जैसा है। यह जानने के बावजूद भारत में गंदगी की समस्या एक आम बात है। लोग अपना घर-द्वार तो साफ रखना जानते हैं, लेकिन यही लोग सड़कों पर कूड़ा-कचरा फेंकने से बाज नहीं आते। रेलवे स्टेशनों, पटरियों जैसी जगहों पर आम लोग निस्संकोच केले का छिलका, बिस्कुट-नमकीन या खाने के पैकेट, पानी की बोतल आदि फेंक देते हैं। कई बार सार्वजनिक स्थानों पर सफाई से संबंधित दिशा-निर्देश या प्रेरक संदेश लिखे रहते हैं। मसलन, ‘आप जो गंदगी फैला रहे हैं, उसे आप जैसा ही कोई इंसान साफ करता है।’ लेकिन इसे पढ़ने के बाद भी लोग गंदगी फैलाने से नहीं चूकते। आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों आदि में उपलब्ध शौचालयों के उपयोग में भी लोग सावधानी नहीं बरतते और अपना काम निपटा कर दूसरों के लिए समस्या छोड़ जाते हैं। सार्वजनिक शौचालय में गंदगी की समस्या में सफाईकर्मियों की कमी या उनकी लापरवाही के अलावा जनता की गलत आदतों का योगदान भी रहता है।
गांवों में लोगों के घरों में शौचालय न होना एक बड़ी समस्या है। आश्चर्य की बात है कि बड़ी संख्या में लोगों के घरों में टेलीविजन और डीटीएच की सुविधा मौजूद है, एक घर में दो-चार मोबाइल या परिवार के अधिकतर सदस्यों के हाथ में मोबाइल हैं, लोग उसमें इंटरनेट चला रहे हैं, लेकिन ऐसे बहुत सारे लोगों के घरों में शौचालय नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की मासिक पत्रिका ‘कुरुक्षेत्र’ के दिसंबर 2014 के अंक के मुताबिक वर्ष 2011 में ग्रामीण क्षेत्रों के आधे से ज्यादा घरों में मोबाइल या टेलीफोन थे, जबकि सिर्फ एक तिहाई घरों में ही शौचालय थे। केंद्र सरकार के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों की सरकारें लोगों के घरों में शौचालय निर्माण के लिए कार्य और दूसरे प्रयास करती आई हैं। घरेलू शौचालय की इकाई लागत को दस हजार रुपए से बढ़ा कर बारह हजार रुपए कर दिया गया है। इसमें हाथ धोने, शौचालय की सफाई और भंडारण को भी शामिल किया गया है। लेकिन इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश में जहां की अधिकतर जनता गांवों में ही निवास करती है, हरेक घर में शौचालय निर्माण करा पाना सरकारों के लिए बहुत कठिन कार्य है।
सरकारी इंतजामों के अलावा असली सवाल यह है कि जो लोग मोबाइल खरीद सकते हैं, डीटीएच के कनेक्शन ले सकते हैं, मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग कर सकते हैं, उनके घरों में शौचालय नहीं होना क्या केवल सरकारी लापरवाही के चलते है! क्या यह खुद लोगों की कमी भी नहीं है? कई तरह की उपभोक्ता सामग्रियों का नियमित इस्तेमाल करने वाले लोगों को न सिर्फ अपने घरों पर अपने खर्च से शौचालय का निर्माण कराना चाहिए, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्रों में शौच जाते समय किसी युवती या महिला के साथ बलात्कार या यौन हिंसा की कोशिश की खबरें आए दिन समाचार पत्रों में देखने को मिल जाती हैं। ऐसी स्थिति में हरेक घर में शौचालय होने से लोगों को न सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभ होगा, बल्कि महिलाओं के साथ शौच जाते समय होने वाली छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं रोकी जा सकती हैं। हालांकि एक बड़ी समस्या की अनदेखी नहीं की जा सकती कि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले बहुत सारे लोगों के पास रहने तक के लिए जरूरी जगह नहीं है। बहुत कम जगह में उनके घर बने होते हैं, जिसमें शौचालय बनवाने के लिए अलग जगह निकालना मुश्किल होता है। जाहिर है, सभी घरों और परिवारों में शौचालय की अनिवार्यता के बीच इस चुनौती से निपटना आखिर सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए।
आदित्य कुमार मिश्रा
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