राज्यसभा में कई गैर राजग दलों के समर्थन के बूते मोदी सरकार के सुधार एजंडे में शामिल दो अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों को शुक्रवार को बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन संसद की मंजूरी मिल गई। उच्च सदन में सरकार के पास अपेक्षित संख्या बल नहीं होने के कारण इन विधेयकों को पारित कराने में बाधाएं आ रही थीं।
खान और खनिज विकास और विनियमन संशोधन विधेयक 2015 और कोयला खान विशेष उपबंध विधेयक 2015 को शुक्रवार को पहले राज्यसभा में पारित किया गया। राज्यसभा में इन विधेयकों पर दो प्रवर समितियों का गठन किया गया था। प्रवर समिति की सिफारिश के आधार पर खान व खनिज विधेयक में एक संशोधन के साथ पारित किया गया। इसके कारण इसे लोकसभा फिर से भेज कर संशोधन के साथ दोबारा मंजूरी दिलवाई गई।
इन दोनों ही विधेयकों का उच्च सदन में कांग्रेस व वाम सदस्यों ने विरोध किया जबकि मतदान से पहले जद (एकी) ने सदन से वाक आउट कर दिया। राज्यसभा में किए गए संशोधनों के साथ इसके लोकसभा में दोबारा लाए जाने पर निचले सदन के विपक्षी सदस्यों ने कहा कि सरकार अगर पहले ही इन संशोधनों के लिए राजी हो जाती और बहुमत के बल पर विपक्ष की आवाज नहीं दबाती तो ये विधेयक लोकसभा में फिर से लाने की जरूरत नहीं पड़ती। दोनों ही विधेयक कानून बनने के बाद इस संबंध में सरकार के लाए गए अध्यादेशों का स्थान लेंगे। खान व खनिज विधेयक में खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए करने के साथ ही सरकारों की विवेकाधीन शक्तियों का समाप्त करने की दिशा में पहल की गई है। विवेकाधीन शक्तियों के कारण भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रही हैं।
विधेयक में राज्यों को कई अधिकार दिए गए हैं। इसके माध्यम से मूल अधिनियम में नई अनुसूची जोड़ी गई है और बाक्साइट, चूना पत्थर, मैगनीज जैसे कुछ खनिजों को अधिसूचित खनिजों के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें खनन लाइसेंस की नई श्रेणी बनाई गई है।
इसमें खनन के बारे में पट्टे की अवधि और पट्टे को बढ़ाए जाने की रूपरेखा का उल्लेख किया गया है। इसमें खान से संबंधित रियायत प्रदान करने और इससे जुड़ी नीलामी प्रणाली के बारे में बताया गया है। कोयला विधेयक के जरिए कोयला खानों को नीलामी के जरिए आबंटित करने का प्रावधान किया गया है। सरकार के सुधार एजंडा के तहत बीमा विधि संशोधन विधेयक को इसी सत्र में संसद की मंजूरी मिली है।
उच्च सदन ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक 2015 को 69 के मुकाबले 117 मतों से पारित किया। सदन ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति के पास भेजने के वाम दलों के संशोधन और इस विधेयक के विभिन्न उपबंधों पर वाम व कांगे्रस के सदस्यों की ओर से लाए गए संशोधनों को खारिज कर दिया। इस विधेयक के जरिए 1957 के मूल अधिनियम में संशोधन किया गया है। सरकार इससे पहले इस संबंध में एक अध्यादेश जारी कर चुकी है। मौजूदा विधेयक संसद की मंजूरी के बाद उस अध्यादेश का स्थान लेगा।
विधेयक में खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिए करने के साथ ही सरकारों की विवेकाधीन शक्तियों को समाप्त करने की दिशा में पहल की गई है। विवेकाधीन शक्तियों के कारण भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलती रही हैं। विधेयक में राज्यों को कई अधिकार दिए गए हैं। इसके माध्यम से मूल अधिनियम में नई अनुसूची जोड़ी गई है और बाक्साइट, चूना पत्थर, मैगनीज जैसे कुछ खनिजों को अधिसूचित खनिजों के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें खनन लाइसेंस की नई श्रेणी बनाई गई है। इसमें खनन के बारे में पट्टे की अवधि और पट्टे को बढ़ाए जाने की रूपरेखा का उल्लेख किया गया है। इसमें खान से संबंधित रियायत प्रदान करने और इससे जुड़ी नीलामी प्रणाली के बारे में बताया गया है।
लोकसभा में इस विधेयक को दोबारा लाए जाने पर हुई संक्षिप्त चर्चा में भाग लेते हुए बीजद के बी महताब ने कहा कि अंत भला तो सब भला। अच्छी बात है कि सरकार को सद्बुद्धि आई और उसने संशोधनों को स्वीकार किया। माकपा के मुहम्मद सलीम ने कहा कि इससे हमारी संसदीय व्यवस्था की दो सदनों की पद्धति की महत्ता साबित होती है और सरकार को यह सीख लेनी चाहिए कि वह विपक्ष के सुझावों को बकवास नहीं समझे।
खान व खनिज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने चर्चा के जवाब में कहा कि उनकी सरकार बहुमत के दम पर विपक्ष को दबाना नहीं चाहती है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कानून बन जाने से खनन क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव आएगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। उच्च सदन में इस विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के भूपेंद्र यादव ने कहा कि इस विधेयक के बारे में गठित प्रवर समिति की छह बैठकें हुई थीं। उनमें विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों के साथ विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने कहा कि जनता की सहभागिता की दृष्टि से यह विधेयक काफी महत्वपूर्ण है।
जद (एकी) के पवन कुमार वर्मा ने कहा कि इस विधेयक को बनाते समय राज्यों से विचार-विमर्श नहीं किया गया। तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि राज्यों को अधिकार दिए जाने के कारण उनकी पार्टी इस विधेयक का समर्थन कर रही है। अन्नाद्रमुक के नवनीत कृष्णन ने भी विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें राज्यों के हितों का संरक्षण किया गया है। बसपा के राजाराम ने सरकार से कहा कि उसे राष्ट्रीय खनन खोज न्यास के बारे में अधिक स्पष्टीकरण देना चाहिए।
माकपा के तपन कुमार सेन ने कहा कि हम विधेयक के प्रावधानों के विरोधी नहीं लेकिन जिस तरह से इस विधेयक को जल्दबाजी में और राज्यों से विचार-विमर्श के बिना बनाया गया है, हम उसका विरोध कर रहे हैं। जाने-माने वकील और मनोनीत सदस्य केटीएस तुलसी ने राज्यों के अधिकारों को तय करने पर बल देते हुए आशंका जताई कि इस विधेयक के कई प्रावधानों को विधि विरुद्ध घोषित करवाने के लिए विभिन्न पक्ष अदालत की शरण ले सकते हैं।
कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने कहा कि अगर इस विधेयक में पंचायतों और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा तय की जाती तो वे इस विधेयक का समर्थन कर सकते थे। विधेयक पारित होने से पहले जद (एकी) अध्यक्ष शरद यादव ने इससे विरोध जताते हुए कहा कि वे इस प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते इसलिए उनकी पार्टी सदन से वाकआउट कर रही है। उच्च सदन ने इस विधेयक को फिर से प्रवर समिति के पास भेजने के माकपा केपी राजीव के प्रस्ताव को 68 के मुकाबले 112 मतों से खारिज कर दिया।