राजधानी में दालों के दाम बेलगाम हो रहे हैं। आम शहरी की थाली में महंगाई की आग लगी हुई है। दामों में बढ़ोतरी की दो बड़ी वजहें हैं पहला तो दालों की खेती कमी और दूसरा दिल्ली की आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार है। वो ऐसे कि नियम के मुताबिक दाल के थोक व्यापारी भी अपने गोदामों में 2000 बोरियों से ज्यादा दाल नहीं रख सकते हैं। स्टॉक की यह निर्धारित सीमा आज की नहीं बल्कि वर्ष 1947 की है। राजधानी की आबादी बढ़ रही है, लेकिन स्टॉक की सीमा में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।
विभिन्न सरकारें भी जानती हैं कि आबादी के लिहाज से स्टॉक की यह सीमा काफी कम है, इसलिए पहले की सरकारों ने इस मामले में दालों के व्यापारियों को अपने गोदामों में स्टॉक रखने में छूट दे रखी थी। लेकिन केजरीवाल सरकार की सख्ती ने दालों के थोक व्यापारियों के गोदामों में लगातार छापे शुरू कर दिए हैं। वैट विभाग की ओर से मारे जा रहे छापों के डर से व्यापारियों ने गोदामों में दो हजार बोरी से कम स्टॉक रखना शुरू कर दिया। लिहाजा दालों की कम पैदावार और दिल्ली में इसकी कम आवक दाम बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक देश में दाल का उत्पादन 3.7 करोड़ टन है और खपत 2.36 करोड़ टन है। देश में करीब 55 लाख टन दाल का आयात किया जाता है। राजस्थान और महाराष्ट्र हमारे दाल उत्पादक देश हैं। सूखे की वजह से महाराष्ट्र में उत्पादन में काफी कमी आई है। ऐसे में दालों की जरुरत पूरी करने को आयात का विकल्प होता है। मुंबई में बैठे व्यापारी दालों का आयात करते हैं। दिल्ली के व्यापारी उनसे माल खरीद कर गोदामों में स्टॉक करते हैं। खपत के हिसाब से व्यापारी दालों को बाजार में बेचता है। लेकिन दाल के स्टॉट के सरकारी फरमान की वजह से दिल्ली का कोई भी व्यापारी मुंबई से ज्यादा मात्रा में दाल नहीं मंगवा रहा है।