बीते दो से तीन दशकों में भारत ने करोड़ो लोगों को गरीबी के संकट से बाहर निकाला है, लेकिन कोरोना के संकट की वजह से 1.2 करोड़ लोग एक बार फिर से इस दलदल में फंस सकते हैं। विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक भारत में कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए लागू किए गए लंबे लॉकडाउन के चलते 1.2 करोड़ लोग भारत में फिर से गरीबी रेखा से नीचे जा सकते हैं, जबकि पूरी दुनिया में 5.9 करोड़ लोग भयानक गरीबी में घिर सकते हैं। बीते सालों में एक छोटी सी नौकरी और कुछ आर्थिक सुरक्षा के चलते एक बड़ा वर्ग गरीबी रेखा से ऊपर आया था, लेकिन अब आजीविका पर संकट आने के चलते हालात फिर बिगड़ गए हैं।
अप्रैल महीने में भारत में संगठित और असंगठित क्षेत्र में कुल 12.2 करोड़ लोगों की नौकरियां गई हैं। CMIE के डेटा के मुताबिक दिहाड़ी मजदूर और रेहड़ी-पटरी लगाने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
कोरोना न आता तो गरीब देश के तमगे से बाहर होता भारत: वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत जिस गति से आगे बढ़ रहा था, उससे आने वाले कुछ सालों में वह सबसे ज्यादा गरीबों वाले देश के तमगे से बाहर हो जाता, लेकिन कोरोना से निपटने को लागू हुए लॉकडाउन ने एक बार फिर से सालों पीछे धकेलने का काम किया है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह स्थिति नरेंद्र मोदी सरकार की राजनीतिक संभावनाओं के लिए भी चिंताजनक हो सकती है, जो अपने पिछले कार्यकाल में गरीबों के लिए शुरू की गई मेगा स्कीमों के नाम पर ही सत्ता में आई है।
मोदी सरकार के लिए भी हो सकता है राजनीतिक रिस्क: डिवेलपमेंट सेक्टर की कंसल्टेंसी फर्म IPE Global मैनेजिंग डायरेक्टर अश्वजीत सिंह ने ब्लूमबर्ग से बातचीत में कहा कि भारत सरकार की ओर से गरीबी को खत्म करने के लिए सालों से किए गए प्रयास कुछ महीनों में ही बेकार साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि भारत में रोजगार की स्थिति इस साल बेहतर हो पाएगी। कोरोना वायरस से ज्यादा लोगों की मौत भूख से हो सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए भी यह एक राजनीतिक खतरा है, जो सबको आवास और गरीबों को गैस सिलेंडर जैसी स्कीमों के नाम पर दोबारा चुनकर आई है।