देश के सबसे पुराने बैंकों में से एक लक्ष्मी विलास बैंक की 94 साल पुरानी कहानी का अंत होने जा रहा है। इस बैंक का अब सिंगापुर के डीबीएस बैंक में विलय होगा। बैंक के अधिग्रहण को भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से मंजूरी दे दी गई है। बीती कई तिमाहियों से संकट के दौर से गुजर रहे बैंक को पूंजी जुटाने में मुश्किल हो रही है। इसके चलते लक्ष्मी विलास बैंक की नजर इस पर थी कि कोई अन्य बैंक उसका अधिग्रहण कर ले। लक्ष्मी विलास बैंक के अधिग्रहण को लेकर कई संस्थाओं ने रुचि जताई थी, लेकिन आरबीआई की ओर से उनके प्रस्तावों को खारिज कर दिया था। आरबीआई ने इंडियाबुल्स के ऑफर को खारिज कर दिया था। इसके अलावा Clix Capital के साथ वैल्यूएशन को लेकर डील अटक गई थी।
लक्ष्मी विलास बैंक की स्थापना 1926 में हुई थी और वीएसएन रामलिंगा चेत्तियार के नेतृत्व में 7 कारोबारियों ने इसकी शुरुआत की थी। लेकिन बैंक में संकट की शुरुआत सितंबर महीने में हुई थी, जब खराब परफॉर्मेंस के चलते शेयरहोल्डर्स ने सीईओ और ऑडिटर्स को बेदखल कर दिया था। इसके बाद बैंक से तीन सप्ताह के अंदर ही 1,500 करोड़ रुपये की निकासी लोगों ने की है। लेकिन अब सरकार ने बैंक पर मोरोटोरियम लागू कर दिया है। एक महीने तक बैंक के ग्राहक 25,000 रुपये से ज्यादा की रकम नहीं निकाल पाएंगे। लक्ष्मी विलास बैंक की शुरुआत पश्चिमी तमिलनाडु में कारोबारियों को वित्तीय मदद देने के लिए हुई थी।
रिटेल बिजनेस और छोटे लोन्स के चलते बैंक ने 9 दशकों तक सफलतापूर्वक काम किया था। लेकिन बैंक का संकट तब बढ़ गया, जब उसने बड़े लोन देने शुरू कर दिए और फिर पूंजी अटक गई। बैंक ने 720 करोड़ रुपये का लोन मालविंदर सिंह और शिविंदर सिंह को जारी किया था, जो दवा कंपनी रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटर हैं और फोर्टिस हेल्थेकेयर हॉस्पिटल चेन के मालिक रहे हैं। यह लोन कंपनी ने 794 करोड़ रुपये की एफडी के एवज में दिए थे, जिसे Religare Finvest ने निवेश किया था।
सिंह ब्रदर्स ही Religare के प्रमोटर रहे हैं। लेकिन बकाया लोन के लिए जब बैंक ने एफडी के जरिए भुगतान लेना चाहा तो कंपनी ने लक्ष्मी विलास बैंक के खिलाफ केस कर दिया। यह मामला फिलहाल अदालत में लंबित है। जानकार कहते हैं कि इस तरह से बड़े लोन तेजी से देने के चलते लक्ष्मी विलास बैंक संकट में आ गया और कैश की कमी पैदा हो गई।
