भारत के मशहूर हीरा कारोबारी गोविंद ढोलकिया ने हाल ही अपनी आत्मकथा “डायमंड आर फॉरेवर, सो आर मोरल्स (Diamond are Forever, so are Morals)” का विमोचन किया है। इस पुस्तक में उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने शून्य से शुरुआत कर एक करोडों की कंपनी खड़ी की और हीरे के व्यापार को बेल्जियम से भारत लाए।
गोविंद ढोलकिया का जन्म गुजरात के गांव में गरीब किसान परिवार में हुआ था। वे कुल 7 भाई बहन थे और उनके बचपन में भी एक आम गरीब बच्चे की तरह बेहतर सुविधाओं और शिक्षा का आभाव था।
ढोलकिया ने अपनी आत्मकथा में बताया कि वे 1964 में अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के पहली बार सूरत आए थे, लेकिन उनकी आंखों में कुछ अलग और बड़ा करने का सपना था। उन्होंने हीरे के व्यापार में अपने कैरियर की शुरुआत डायमांड पॉलिश करने से की। पहली बार कामयाबी उन्हें तब मिली जब उनके द्वारा 1970 में श्री रामकृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (SRK) की स्थापना की, जो आगे चलकर दुनिया की सबसे बड़ी हीरे काटने और निर्यात करने वाली कंपनी बनी। आज श्री रामकृष्णा एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड की वैल्यू एक बिलियन डॉलर से अधिक है।
अपनी आत्मकथा के विमोचन पर ढोलकिया ने कहा कि “इस पुस्तक के माध्यम से मेरे जीवन, संघर्षों और पेशेवर यात्रा के एक महत्वपूर्ण हिस्से को फिर से देखना एक खुशी की बात है। हम में से प्रत्येक के पास अलग-अलग जीवन के अनुभव हैं जो हमारे वर्तमान और भविष्य को आकार देते हैं और इस पुस्तक के माध्यम से मैं अपने जीवन के अनुभवों को सभी के साथ साझा करना चाहता हूं ताकि सभी आश्वस्त हो सके कि ईमानदारी और नैतिकता की मदद से भी जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त की जा सकती है और यह अत्यधिक संतुष्टि देता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गोविंद ढोलकिया की आत्मकथा को प्रेरणा का स्त्रोत बताया है। उन्होंने कहा कि “बचपन की घटनाओं से लेकर, प्रारंभिक शिक्षा और पेशेवर मार्चे पर स्किल डेवलपमेंट तक भी जानकारियों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है। जैसा कि इस पुस्तक के शीर्षक में नैतिकता पर अधिक जोर दिया गया है, जो आज के समय में युवाओं के लिए बहुत जरूरी है। मुझे आशा है कि इस पुस्तक को पाठकों से काफी प्यार मिलेगा और इसे पढ़कर प्रेरित भी होगे।”