नीतिगत दरों में यथास्थिति बनाये रखने के रिजर्व बैंक के रुख से नाराज उद्योग जगत ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि की सुस्त चाल को बढ़ाने के लिये रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कमी लाकर बेहतर तालमेल और सामंजस्य बिठा सकता है।  प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडलों ने कहा कि दरों में कटौती से विनिर्माण क्षेत्र को सकारात्मक संकेत दिया जा सकता था जो मुश्किल दौर से गुजर रहा है।

फिक्की के अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला ने एक बयान में कहा ‘‘हालांकि, ढांचागत क्षेत्र में कुछ सुधार हुआ है लेकिन मांग में नरमी के चलते विनिर्माण क्षेत्र में नरमी रही जिससे क्षमता उपयोग में सुधार पर नियंत्रण लगा।’’ उन्होंने कहा ‘‘हमें उम्मीद है कि आरबीआई अगली नीतिगत समीक्षा चक्र से पहले भी सकारात्मक संकेत दे सकता है।’’
उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा है कि रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कमी लाने की उद्योगों की मांग को नजरंदाज किया है जबकि उद्योगों की निम्न ब्याज दर परिवेश बनाये जाने की मांग पूरी तरह उचित है।

एसोचैम के अनुसार, ‘‘केवल अर्थिक वृद्धि से ही रोजगार की समस्या से निपटा जा सकता है और अंतत: आपूर्ति बढ़ाकर मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सकता है। आर्थिक वृद्धि के जरिये ही मुद्रास्फीति को सतत आधार पर नियंत्रण में रखने के लिये संरचनात्मक बदलाव लाये जा सकते हैं।’’

रिजर्व बैंक ने आज रेपो दर को आठ प्रतिशत, नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को चार प्रतिशत पर यह कहते हुए बरकरार रखा कि अभी मौद्रिक नीति में कोई भी बदलाव जल्दबाजी होगी।

सीआईआई ने कहा कि आर्थिक सुधारों को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। उद्योगों की चाल अनिश्चित है ऐसे में आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती से नकदी संकट से जूझ रहे लघु एवं मध्यम उपक्रमों को फायदा होता और उद्योग का रिण लेने का रुझान बढ़ता।

हालांकि, आरबीआई के रुख को उचित ठहराते हुए परामर्श कंपनी केपीएमजी ने कहा कि कच्चे तेल की वैश्विक कीमत में गिरावट के कारण मुद्रास्फीति घट रही है जबकि घरेलू अर्थव्यवस्था में ढांचागत बदलाव का इंतजार है।

केपीएमजी ने कहा ‘‘मुद्रास्फीति में गिरावट घरेलू अर्थव्यवस्था में ढांचागत बदलाव के कारण नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में गिरावट के कारण आई है जो रिकॉर्ड निम्न स्तर पर आ गई हैं।’’

केपीएमजी इंडिया के भागीदार (वित्तीय सेवा) शाश्वत शर्मा ने कहा ‘‘इसलिए हम आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती नहीं करने के रुख को समझते हैं और इसकी प्रशंसा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था में ढांचागत बदलाव करेगी।’’

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति खाद्य उत्पादों की कीमत में कमी के कारण अक्तूबर में घटकर 5.52 प्रतिशत रह गई जबकि थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इसी महीने घटकर 1.77 प्रतिशत के पांच साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई।

इधर तिरूपुर निर्यात संघ (टीईए) के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कि सरकार ने अभी तक तीन प्रतिशत ब्याज छूट योजना की घोषणा नहीं की है जो 31 मार्च को समाप्त हो गई है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपड़ा क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर हुआ है।