डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया शुक्रवार को 96 पैसे लुढ़क गया और 68 रुपये प्रति डॉलर के निशान को पार कर गया। एक मार्च के बाद रुपये की यह सबसे कमजोर स्थिति है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने या बाहर आने के जनमत संग्रह के नतीजों के बाद यह गिरावट देखने को मिली। ब्रिटेन की जनता ने जनमत संग्रह के दौरान यूरोपीय संघ से बाहर आने का चुनाव किया है। इसके बाद वैश्विक बाजारों में गिरावट देखने को मिली। इससे भारत भी अछूता नहीं रह पाया और सेंसेक्स 1000 अंक नीचे चला गया।
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क्यों लुढ़का रुपया: जानकारों का कहना है कि आयातकों में अमेरिकन करेंसी की भारी मांग और बैंकों व विदेशी फंड के बाहर जाने के चलते घरेलू मुद्रा पर दबाव बढ़ा। साथ ही कई अन्य मुद्राओं के मुकाबले भी डॉलर मजबूत हुआ है। घरेलू इक्विटी मार्केट के क्रैश होने के कारण रुपये पर दबाव बढ़ गया। इसके चलते रुपये में एक दिन में इतनी बड़ी गिरावट देखने को मिली। डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड का मूल्य भी गिरा है। इससे भी रुपये पर दबाव बढ़ा। गुरुवार को रुपयो 23 पैसे मजबूत होकर 67.25 रुपये पर बंद हुआ था। बैंकों और निर्यातकों को उम्मीद थी कि डॉलर में कमजोरी आएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ब्रिटिश पाउंड भी शुक्रवार को छह फीसदी तक गिर गया, जो कि 31 साल में सबसे बड़ी गिरावट है। इससे पहले सितम्बर 1985 में पाउंड में गिरावट देखने को मिली थी।
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क्या असर होगा: रुपया कमजोर होने से भारत का करंट अकाउंट डेफिशिट बढ़ेगा यानि भारत की आय कम होगी और दूसरे देशों का कर्ज बढेगा। तेल की कीमतों में वृद्धि होती है। क्योंकि तेल उत्पादक देश डॉलर में भुगतान लेते हैं। कमजोर रुपया माने ज्यादा पैसा देना होगा। सोने की कीमतों में उछाल। रुपये के गिरने से सोने की कीमतों में वृद्धि देखने केा मिलती है। यही कारण था कि शुक्रवार को सोने के भाव बढ़ गए। विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों और बाहर के निवेशकों को नुकसान पड़ता है। कमोडिटी कंपनियों का लाभ घट जाता है। हालांकि आईटी कंपनियों को इससे फायदा होता है।
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