IRCTC Shramik Special Train Ticket Charges: भले ही केंद्र सरकार श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए टिकटों में 85 पर्सेंट की छूट के दावे कर रही है, लेकिन इनकी पड़ताल करें तो सच्चाई कुछ अलग ही नजर आती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक छूट देने की बजाय मोदी सरकार के रेल मंत्रालय ने राज्यों से उलटे टिकट के अधिक दाम वसूले हैं। दरअसल यह स्पष्ट नहीं है कि मोदी सरकार ने बेस फेयर का कैलकुलेशन कैसे किया था, लेकिन श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के लिए जो किराया वसूला गया, वह मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों के स्लीपर क्लास के मुकाबले ज्यादा था। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों का किराया लोकल/पैसेंजर ट्रेनों से 80 फीसदी तक ज्यादा होता है। ऐसे में एक्सप्रेस ट्रेनों से भी अधिक किराया लिया जाना रेलवे के दावे पर सवाल जरूर उठाता है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो मेल और एक्सप्रेस ट्रेन से यदि आप 501 किलोमीटर की यात्रा जनरल क्लास करते हैं तो 151 रुपये किराया देना होता है। इसके अलावा स्लीपर क्लास में 276 रुपये देने होते हैं। यह बेस फेयर है और इसके अलावा रिजर्वेशन चार्ज जैसे कई अन्य खर्च भी करने होते हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट में छत्तीसगढ़ सरकार ने जानकारी दी थी कि उसने 40 ट्रेनों के लिए 3,83,31,330 रुपये रेलवे को दिए हैं। scroll.in की रिपोर्ट के मुताबिक 24 मई को केरल के तिरुअनंतपुरम से छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर को रवाना होने वाली ट्रेन के लिए 13 लाख रुपये रेलवे ने छत्तीसगढ़ सरकार से लिए थे। रेलवे ने यह किराया 1,200 यात्रियों के लिए वसूला था। अब यदि आप 13 लाख रुपये को 1,200 रुपये में विभाजित करते हैं तो प्रत्येक यात्री का किराया 1,083 रुपये बनता है, जबकि 2,675 km की दूरी का स्लीपर क्लास का किराया 813 रुपये होता है।
इसके अलावा गुजरात से छत्तीसगढ़ के लिए 9 मई से लेकर 28 मई तक 16 ट्रेनें चली थीं। इन ट्रेनों में 23,770 ने सफर किया था, जिसके लिए रेलवे ने 1,47,74,405 रुपये की वसूली की गई थी। इस तरह कैलकुलेट करें तो प्रत्येक व्यक्ति से 621 रुपये किराये की वसूली की गई, जबकि रेलवे की तय दरों के तहत यह किराया 535 रुपये ही बनता है। गौरतलब है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर कई बार राजनीति भी गर्मा चुकी है। पिछले महीने अधिक किराये की वसूली के आरोपों पर सफाई देते हुए रेलवे ने कहा था कि राज्य सरकारों से केवल मानक किराया वसूला जा रहा है, कुल लागत का महज 15% है यानि रेलवे खुद टिकट की 85% लागत वहन कर रहा है।
इलाहाबाद से दुर्ग के लिए भी वसूला ज्यादा किराया: इसी तरह इलाहाबाद के सूबेदारगंज रेलवे स्टेशन से छत्तीसगढ़ के दुर्ग के लिए रवाना हुई ट्रेन से 1,728 यात्री सवार थे और इनके स्लीपर क्लास के किराये के तौर पर छत्तीसगढ़ सरकार ने 8,56,000 रुपये की रकम जारी की थी। प्रति व्यक्ति यह किराया 495 रुपये हुआ, जबकि रेलवे की ओर से स्लीपर क्लास के लिए अधिसूचित किराया सिर्फ 365 रुपये ही है। इस तरह से रेलवे ने इस ट्रेन में सवार यात्रियों के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार से प्रति यात्री 130 रुपये अतिरिक्त वसूल लिए।
रूट बदलने से और बढ़ गया संकट: यही नहीं मजदूरों का संकट तब और बढ़ता दिखा, जब रेलवे की ओर से चलाई गई स्पेशल ट्रेनें लंबे रूट से घूमते हुए गंतव्य तक पहुंची। हालांकि सवाल उठने पर रेलव मंत्री ने कहा था कि ऐसा रेलवे की किसी चूक की वजह से नहीं हुआ था। ऐसा रेलवे ने प्लानिंग के तहत किया था क्योंकि ज्यादातर श्रमिक स्पेशल ट्रेनें यूपी और बिहार के लिए ही थीं और किसी एक रूट पर जाम के चलते ट्रेनों को वैकल्पिक रास्तों से आगे बढ़ाया गया।
26 घंटे की यात्रा में सिर्फ एक बार खाना: यही नहीं रेलवे की ओर से मुफ्त में राशन और पानी मुहैया कराने की बात भी सही साबित नहीं होती। रेलवे की ओर से हर सफर के लिए प्रति यात्री 50 से 100 रुपये अतिरिक्त वसूले गए, लेकिन इसके बाद भी खाने और पीने की पर्याप्त सप्लाई नहीं थी। जैसे अहमदाबाद से छत्तीसगढ़ के चम्पा के लिए चली ट्रेन से उतरने वाले यात्रियों ने खाना न मिलने की शिकायत की थी। यात्रियों का कहना था कि पूरे सफर के दौरान उन्हें सिर्फ एक बार ही खाना मिल पाया, जबकि उन्होंने 26 घंटे की लंबी यात्रा की थी।