साल 2025 खत्म होने को है और इस साल देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई सकारात्मक खबरें आईं। जनवरी 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभाली और इसके बाद दुनियाभर के देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल मच गई। भारतीय बाजार पर भी इसका असर पड़ा लेकिन देश की अर्थव्यवस्था स्थिर रही। हाल ही में आए आंकड़ों से पता चलता है कि आर्थिक विकास दर में सामान्य से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई।

ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर जुलाई-सितंबर की दूसरी तिमाही में 8.2 फीसदी बढ़ी, जो पिछली छह तिमाहियों में सबसे ज्यादा है। यह वृद्धि करीब सात फीसदी के अनुमान से ज्यादा है। साल 2025 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर कई प्रमुख कारकों ने असर डाला। इनमें वैश्विक आर्थिक हालात सबसे ऊपर है। इसके अलावा, केंद्रीय बैंक आरबीआई द्वारा साल में कुल 4 बार रेपो रेट में कटौती, जीएसटी दरों में कटौती, मैन्युफैक्चरिंग और PLI स्कीम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़े स्तर पर प्रभावित किया।

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भारतीय अर्थव्यवस्था 2025: ग्रोथ

अमेरिका और यूरोप में धीमी ग्रोथ, चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती और भू-राजनीतिक तनाव (जैसे युद्ध और ट्रेड टेंशन) का असर भारत के निर्यात और विदेशी निवेश पर पड़ा। साल की शुरुआत से ही शेयर बाजार में गिरावट हो रही थी लेकिन साल खत्म होते-होते Sensex-Nifty ऑल-टाइम हाई पर पहुंच गए। ग्लोबल ब्याज दरों और बाजार के रुझान के चलते विदेशी निवेश में उतार-चढ़ाव देखने को मिला।

इजरायल-हमास, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते निवेशकों ने शेयर मार्केट से हाथ खींचे और महंगी धातुओं में निवेश किया। इसका असर यह हुआ कि सोने-चांदी की कीमतों में इस साल रिकॉर्ड इजाफा हुआ और चांदी ने 2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम का आंकड़ा पार कर लिया। जबकि सोने ने 1,38,930 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव को छूने के साथ सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।

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सरकारी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुमान के अनुसार, भारत की GDP ग्रोथ 6 से 7 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद है। यह दर वैश्विक औसत से कहीं बेहतर है। इसके पीछे कई कारण हैं। इनमें मजबूत घरेलू मांग, इंफ्रास्ट्रक्चर पर बढ़ता सरकारी खर्च, मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली ‘मेक इन इंडिया’ और PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) जैसी योजनाएं शामिल हैं।

डिजिटल इकोनॉमी, स्टार्टअप इकोसिस्टम और फिनटेक सेक्टर ने भी ग्रोथ को रफ्तार दी है। UPI, डिजिटल पेमेंट्स और ई-कॉमर्स के विस्तार से उपभोक्ता खर्च में वृद्धि हुई है। हालांकि, निर्यात क्षेत्र को वैश्विक मंदी, पश्चिमी देशों में धीमी मांग और व्यापारिक अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ रहा है जिससे ग्रोथ पर आंशिक दबाव बना हुआ है।

दिसंबर में मौद्रिक नीति पेश करते हुए रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान बढ़ाकर 7.3 प्रतिशत किया।

वित्तीय वर्ष (FY26) GDP ग्रोथ: 7.3%

तीसरी तिमाही: 7%

चौथी तिमाही: 6.5%

2027 की पहली तिमाही (Q1 FY27 का अनुमान): 6.4%

भारतीय अर्थव्यवस्था 2025: रोजगार का हाल

रोजगार इस साल भी देश में सबसे जरूरी मुद्दों में से एक बना हुआ है। एक ओर स्टार्टअप्स, आईटी, डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ग्रीन एनर्जी जैसे सेक्टर्स में नए अवसर पैदा हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पारंपरिक क्षेत्रों में नौकरियों पैदा होने की रफ्तार कम हुई है। सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे, लॉजिस्टिक्स और हाउसिंग पर बढ़े कैपिटल एक्सपेंडिचर ने ग्रोथ को सपोर्ट किया और नई नौकरियां पैदा कीं।

शहरी इलाकों में सर्विस सेक्टर और गिग इकोनॉमी ने रोजगार के नए रास्ते खोले हैं। फूड डिलीवरी, राइड-हेलिंग, फ्रीलांसिंग और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से जुड़े काम युवाओं को रोजगार दे रहे हैं। लेकिन इन नौकरियों में स्थिरता, सोशल सिक्यॉरिटी और इनकम की गारंटी को लेकर सवाल बने हुए हैं।

लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति थोड़ी अलग है। कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन कृषि से जुड़े रोजगार सीमित हैं। लॉन्ग-टर्म समाधान के लिए ग्रामीण उद्योगों और MSME सेक्टर को और मजबूत करना जरूरी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था 2025: महंगाई का हाल

हाल ही में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक, देश में पहले के मुकाबले महंगाई दर नियंत्रण में है लेकिन पूरी तरह राहत नहीं है। खाने-पीने के सामानों का दाम बढ़ना अभी भी एक चुनौती है। सब्जियों, दालों और अनाज की कीमतों पर मौसम, सप्लाई चेन और अंतरराष्ट्रीय बाजारों का सीधा असर देखने को मिल रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने साल 2025 में कुल 4 बार रेपो रेट में कटौती की है। हाल ही में दिसंबर 2025 में आरबीआई ने रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी। 2025 में रेपो दर में अब तक कुल 1.25 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है। इससे पहले, केंद्रीय बैंक ने इस साल फरवरी से जून तक रेपो दर में कुल एक प्रतिशत की कटौती की थी। वहीं अगस्त और अक्टूबर में मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया था।

वित्त वर्ष 2026 (FY26) की कुल महंगाई का अनुमान: 2%

पहली तिमाही (Q3) FY26: 0.6%

चौथी तिमाही (Q4 FY26): 2.9%

पहली तिमाही (Q1 FY27): 3.9%

दूसरी तिमाही (Q2 FY27): 4%

महंगाई को काबू में रखने के लिए ब्याज दरों पर केंद्रीय बैंक ने संतुलित रुख अपनाया है। मौद्रिक नीति का उद्देश्य एक ओर महंगाई को नियंत्रित करना है वहीं दूसरी ओर ग्रोथ को नुकसान से बचाना भी है। ईंधन की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर रहने से परिवहन और लॉजिस्टिक्स लागत में बहुत अधिक बढ़ोतरी नहीं हुई जो एक सकारात्मक संकेत है।

लेकिन सबसे बड़ी बात है कि मिडिल क्लास और निम्न आय वर्ग पर महंगाई का बोझ अब भी साफ नजर आता है। रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें महंगी होने से बचत पर असर पड़ा है और उपभोक्ता व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिल रहा है।