पहले कंपनियां अपने गाहकों के लिए कस्टमर इज किंग जैसे शब्दों का प्रयोग करती थी, लेकिन आज समय बदल गया है और कंपनियां गाहकों से अगल-अलग तरीके एक चार्ज वसूल कर उन्हें चूना लगा रही है। आज हम आपको कुछ ऐसे ही चार्जेज के बारे में बताने जा रहे हैं….

­शॉपिंग बैग चार्ज: दुनियाभर में 2014 से 2018 के बीच 127 देशों ने प्लास्टिक बैग के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए नियम बनाए, जिसके बाद दुकानों पर प्लास्टिक बैग के लिए शुल्क लिया जाने लगा और इसने कई और लोगों को शॉपिंग बैग ले जाने के लिए प्रोत्साहित किया।  वहीं, दुकानों और मॉल ने इसे गाहकों से एक्स्ट्रा चार्ज लेने का माध्यम बना लिया। कई दुकानों और मॉल में इसे नियम बना लिया और फिर पश्चिमी देशों से यह चलन भारत में भी आ गया। कंपनियों के आउटलेट्स पर तो बेसिक पैकेजिंग के लिए भी चार्ज किया जाता है।

भारत के पैकेजिंग नियमों के मुताबिक कोई भी कंपनी अपने लोगो (Logo) लगे पैकेजिंग बैग के लिए ग्राहक से पैसे नहीं ले सकती है। हालांकि, कंपनियां बिना लोगो लगे बैग के लिए पैसे ले सकती है। लेकिन देखा गया है कि कई कंपनियों गाहकों से लोगो लगे पैकेजिंग बैग के लिए भी चार्ज करती है।

कॉल करने के लिए प्रीमियम दरों का भुगतान करना: 1980 के दशक में दुनिया के सामने टोलफ्री नंबर (1800) कांसेप्ट सामने आया, जो कुछ समय के दौरान वस्तु और प्रदान करने वाली कंपनियों के बीच में पॉपुलर हो गया। लेकिन बाद में 1860 प्रीमियम सीरीज को लॉन्च किया। आज भी कई रिटेलर, बैंक और कंपनियां अपने ग्राहकों को सुविधा देने के लिए इस सेवा का प्रयोग करती है, जिससे वह ग्राहकों से अधिक पैसे चार्ज कर सकें।

रेस्तरां में पैकिंग शुल्क: कई लोग रेस्तरां में लगने वाले पैकिंग शुल्क को बिना कोई सवाल उठाए आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। ऑनलाइन फूड डिलीवरी कंपनियां जैसी स्विगी और जोमैटो तो बिल में लगाकर पैकिंग चार्ज वसूल करती हैं।

रेस्तरां में सर्विस चार्ज: रेस्तरां में सर्विस चार्ज ग्राहकों से वसूला जाता है। सरकार भी इसे लेकर कह चुकी है कि कोई भी रेस्तरां ग्राहकों से जबरदस्ती सर्विस चार्ज नहीं ले सकता है।