कभी देश के 5वें नंबर के प्राइवेट बैंक रहे यस बैंक के संकट में घिरने के बाद से बैंकों की सेहत पर सवाल उठने लगे हैं। यस बैंक के संकट में घिरने के पीछे हजारों करोड़ रुपये के एनपीए को जिम्मेदार माना जा रहा है। आमतौर पर बैंकों की सेहत का पैमाना भी एनपीए ही माना जाता रहा है। आइए जानते हैं, देश के किस बैंक का कितना कर्ज फंसा है…
NPA में IDBI नंबर वन: बैंकों के ग्रॉस एनपीए की बात करें तो सरकार की ओर से हाल ही में निजी हाथों में सौंपे गए आईडीबीआई बैंक का 28.7 फीसदी ग्रॉस एनपीए है।
लक्ष्मी विलास बैंक का 23% NPA: लक्ष्मी विलास बैंक का 23.3 पर्सेंट ग्रॉस एनपीए है। एनपीए कर्ज का वह हिस्सा होता है, जिसे बैंक फंसा हुआ मानते हैं। किसी भी लोन के ब्याज की भी तीन महीने तक कोई अदायगी न होने पर लोन को एनपीए में डाल दिया जाता है।
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया: सरकारी क्षेत्र के सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का 20 फीसदी एनपीए है। एनपीए के लिहाज से यह प्रतिशत बहुत ज्यादा है।
UCO बैंक: सरकारी क्षेत्र के इस वित्तीय बैंक का 19.5 फीसदी ग्रॉस एनपीए है।
5वें नंबर पर इलाहाबाद बैंक: इंडियन बैंक के साथ 1 अप्रैल से विलय होने वाले इलाहाबाद बैंक का 18.9 फीसदी एनपीए है।
इन 5 बैंकों की हालत बेहतर: सबसे कम ग्रॉस एनपीए एचडीएफसी बैंक का 1.4 प्रतिशत है। बंधन बैंक का एनपीए 1.9 पर्सेंट है और डीसीबी बैंक का 2.2 फीसदी एनपीए है। इंडसइंड बैंक का 2.2 फीसदी एनपीए है, जबकि कोटक महिंद्रा बैंक का 2.5 फीसदी एनपीए है।
क्या होता है ग्रॉस एनपीए: किसी भी बैंक की ओर से जारी किए गए लोन का वह हिस्सा एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स कहलाता है, जिसे कर्जधारक लौटा न रहा हो। लगातार तीन महीने तक कर्ज की किस्त या फिर ब्याज न चुकाने पर बचे हुए अमाउंट को एनपीए माना जाता है।