भारत की सड़कों पर आज एक से एक लग्जरी कारें दौ़ड़ती नजर आती हैं, लेकिन भारत में बनी पहली कार अंबेसडर थी। दशकों तक नौकरशाहों और नेताओं की सवारी रही अंबेसडर अब बहुत कम ही दिखती है, लेकिन आज भी इसके दीवानों की कमी नहीं है। यह युनाइटेड किंगडम की मॉरिस ऑक्सफोर्ड के बेस पर बनी थी। मॉरिस ऑक्सफोर्ड मॉडल बनाने के लिए मॉरिस मोटर्स के साथ एक टेक्निकल कोलैबोरेशन में कोलकाता में इसका निर्माण हुआ था। इसे ही बाद में एचएम अंबेसडर कहा गया। भारत की सड़कों पर पहली अंबेसडर आज से 72 साल पहले 1958 में आई थी।
‘मेड इन इंडिया कार’ अंबेसडर को 1960 और 1970 के दशक में स्टेट्स सिंबल के रूप में देखा जाता था। अंबेसडर भारत की पहली डीजल कार भी थी। अपनी तगड़ी बनावट और कंफर्टेबल राइड के लिए अंबेसडर को ‘किंग ऑफ इंडियन रोड्स’ भी कहा जाता है। इसके साथ ही अंबेसडर भारत की सबसे लंबे समय तक प्रोडक्शन वाली कार भी रही। 1958 से लेकर 2014 तक एंबेसडर का प्रोडक्शन हुआ। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में प्रोडक्शन बंद होने से पहले हिंदुस्तान मोटर्स की अंबेसडर की टोटल यूनिट्स में से 16 फीसदी यूनिट भारत सरकार ने खरीदी थी। आज भी भारत के कस्बों और छोटे शहरों में सरकारी अधिकारी ऑफिशियल ट्रांसपोर्ट के रूप में अंबेसडर पर सफर करते दिख जाएंगे।
भारत में 1958 में उतरी अंबेसडर की कीमत 14 हजार रुपए थी, जबकि 2014 में अंबेसडर की कीमत समय के साथ बढ़कर 5.22 लाख हो गई। अंबेसडर की पहली जेनरेशन में 1,489 cc डीजल इंजन था। 1958 से अंबेसडर के 7 जेनरेशन मार्केट में आए। अंबेसडर का पहला जेनरेशन Mark 1 था जबकि आखिरी जेनरेशन इनकोर था । BS-IV इमिशन स्टैंडर्ड्स को पूरा करने के लिए अंबेसडर इनकोर हिंदुस्तान अंबेसडर का आखिरी मॉडल थी।
आज अंबेसडर बेशक नई कार कंपनियों जैसे मारुति सुज़ुकी, हुंडई, टोयोटा, होंडा आदि से सामने अपनी मार्केट पकड़ खो चुकी हो। लेकिन दशकों तक भारत की सड़कों पर राज करने वाली अंबेसडर को 2013 में ग्लोबल आटोमोटिव प्रोग्राम टॉप गियर में दुनिया की बेस्ट टेक्सी माना गया था। भारतीय मार्केट में मारुति सुजुकी के आने से पहले हिंदुस्तान मोटर्स देश की टॉप ऑटो कंपनी थी।
