नए सोशल सिक्योरिटी कोड बिल के अनुसार ग्रेच्युटी बेनिफिट लेने के लिए अब 5 साल तक नौकरी करना जरूरी नहीं रहेगा। विभिन्न कैटेगरी वर्कर्स के लिए नए प्रावधान लागू करते हुए नए सिक्योरिटी कोड में ग्रैच्युटी के लिए 5 साल नौकरी की न्यूनतम सीमा को समाप्त कर दिया गया है। इसकी बजाय अब ग्रैच्युटी की पेमेंट को नौकरी के कार्यकाल के साथ जोड़ दिया है। इसका अर्थ यह हुआ कि अब कोई लिमिट नहीं होगी बल्कि जितने सालों तक काम किया, उसके मुताबिक संस्थान ग्रैच्युटी का भुगतान करेंगे।
इस कोड के प्रावधानों के मुताबिक वर्किंग जर्नलिस्ट्स को तीन साल के बाद ग्रेच्युटी बेनिफिट उपलब्ध हो सकेंगे, जबकि सीजनल वर्क्स को हर सीजन पर काम के अनुसार 7 दिन की सैलरी के बराबर ग्रेच्युटी पेमेंट मिलेगा। दरअसल ग्रैच्युटी के लिए 5 साल का प्रावधान बीते कुछ सालों में ज्यादा लगने लगा था। इसकी वजह यह है कि तेजी से नौकरी में असुरक्षा की स्थिति बढ़ी है। इसके अलावा नए अवसरों की तलाश में भी लोग तेजी से नौकरियां बदल रहे हैं। ऐसे में ग्रैच्युटी के लाभ के लिए 5 साल की सीमा ज्यादा थी। बीते कई सालों से वर्कर्स यूनियंस की ओर से यह मांग उठ रही थी कि ग्रैच्युटी लिमिट को 1 से 3 साल तक किया जाना चाहिए।
लेबर मार्केट एक्सपर्ट कहते हैं 5 साल की टाइम लिमिट का प्रावधान आउटडेटेड है और अब यह कर्मचारियों के हितों के लिए उपयुक्त नहीं है। ट्रेड यूनियन कहती हैं कंपनियां पैसे बचाने के लिए कर्मचारी को ग्रेच्युटी पेमेंट के लिए योग्य होने से पहले ही निकाल देती हैं। सोशल सिक्योरिटी कोड बिल के के सब-सेक्शन में वर्किंग जर्नलिस्ट के लिए 5 साल की अवधि को घटाकर 3 साल कर दिया गया है।
इससे पहले 5 साल का ग्रेच्युटी पेमेंट मैंडेटरी था। जिसके हिसाब से कई लाख कर्मचारियों को समय से पहले इस्तीफा देने पर अपने ग्रेच्युटी डिपॉजिट, 15 दिनों की सैलरी छोड़नी पड़ती थी।
लेबर मार्केट के एक एक्सपर्ट ने कहा कि 5 साल का नियम दशकों पहले लाया गया था ताकि लॉन्ग टर्म वर्क कल्चर को प्रमोट किया जा सके। अब वास्तविकता अलग है। आरपी यादव ने इस समय ग्रेच्युटी थ्रीशोल्ड को 2 से 3 साल करने को एक अच्छा विकल्प बताया था। हालांकि बिल में एक ऑप्शन यह भी है अगर कर्मचारी ने कंपनी को किसी तरह का नुकसान पहुंचाया है या फिर संपत्ति को हानि पहुंचाई है तो उस घाटे की भरपाई उसकी ग्रैच्युटी की रकम से की जा सकती है।