Rajeev Kumar
मोदी सरकार पीएफ खाते से जुड़े कानून में बदलाव करने जा रही है। केंद्र सरकार की तरफ से कर्मचारी भविष्य निधि फंड और अन्य प्रावधान (संशोधन) बिल, 2019 का मसौदा प्रस्तावित किया जा चुका है। इसमें कर्मचारियों को कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में से किसी को भी चुनने का विकल्प होगा।
सरकार की तरफ से प्रस्तावित मसौदे में प्रोविडेंट फंड में कर्मचारियों द्वारा अपनी तरफ से किये जाने वाले अंशदान को 12 फीसदी से 10 फीसदी करने का भी विकल्प दिया गया है। वर्तमान में नियोक्ता की तरफ से कर्मचारी की बेसिक सेलरी का 8.33 फीसदी अंशदान ईपीएस में जाता है। यह रकम कर्मचारी को रिटायरमेंट होने के बाद मिलती है।
ईपीएस की गणना 15000 रुपये के मूल वेतन या वास्तविक मूल वेतन यदि वह 15 हजार से कम है तो, के आधार पर की जाती है। ऐसे में यदि कर्मचारी की बेसिक सेलरी 15 हजार रुपये से अधिक है तो ईपीएस में नियोक्ता का अंशदान 8.33 फीसदी होता है। यह राशि 1250 रुपये बनती है।
सरकार के प्रस्तावित मसौदे में अंशदाताओं को ईपीएस से एनपीएस में स्विच करने का विकल्प उपलब्ध होगा। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या ईपीएस से एनपीएस में स्विच करना बेहतर विकल्प है? एनपीएस एक कंट्रीब्यूटरी पेंशन सिस्टम है। भारत का कोई भी नागरिक जिसकी उम्र 18 से 65 साल के बीच है वह एनपीएस में शामिल हो सकता है।
एनपीएस में मिलने वाला रिटर्न मार्केट लिंक होता है। इस योजना में मिलने वाला कुल फायदा जमा की गई रकम, अंशदान की अवधि और व्यक्ति की तरफ से निवेश की गई राशि से कमाई गई आय पर निर्भर करता है। एनपीएस के तहत अंतिम फायदे को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हालांकि, माना जाता है कि लंबे समय में इससे बेहतर रिटर्न मिलता है। आरएसएस से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ सरकार के इस प्रस्तावित मसौदे के खिलाफ है।
बीएमएस की तरफ से जारी बयान के अनुसार बाजार से जुड़ा होने के कारण एनपीएस में रिस्क है। इसकी तुलना में ईपीएस में परिवार के सदयों को लाभ, बीमा, विधवा पेंशन जैसी कई सुविधाएं हैं। एनपीएस में 15 साल की अवधि से पहले पैसा नहीं निकाला जा सकता है।