भले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली को ईपीएफ निकासी पर टैक्स के फैसले से पीछे हटना पड़ा हो लेकिन पेंशनयुक्त समाज के लक्ष्य को उन्होंने छोड़ा नहीं है। इसके तहत अब नियोक्ता(कंपनी) को उनके शेयर का बड़ा हिस्सा कर्मचारी के रिटायरमेंट फंड में जमा करने को कहा जा सकता है। साथ ही इस कदम को अनिवार्य बनाने पर भी विचार हो रहा है। अधिकारियों के अनुसार यह नियम भी 15 हजार से अधिक सैलरी वाले कर्मचारियों पर लागू किया जा सकता है।
वर्तमान में कर्मचारी और नियोक्ता दोनों बेसिक सैलरी का 12 प्रतिशत ईपीएफ में डालते हैं। जहां कर्मचारी का पूरा पैसा ईपीएफ में जाता है वहीं नियोक्ता का 8.33 प्रतिशत हिस्सा ईपीएस में जाता है। इसके तहत अधिकतम 1250 रुपये जमा किए जा सकते हैं। हालांकि नियम में बदलाव करने पर ईपीएस और अन्य शर्तों में भी बदलाव करना होगा। नियमों में बदलाव करने का मतलब होगा कर्मचारी के पेंशन फंड में ज्यादा पैसा जाना। इस कदम के जरिए ईपीएफ की निकासी और निवेश दोनों पर छूट रहेगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री दफ्तर में इस संबंध में उच्चस्तरीय बैठक हुई। इस दौरान सहमति बनी कि यह पेंशनयुक्त समाज की दिशा में अच्छा कदम होगा। सरकार इस समय कोई गलती नहीं चाहती। इसलिए सभी शेयरधारकों से इस प्रस्ताव पर गंभीर विचारविमर्श किया जाएगा।