सरकारों का आर्थिक संकट किस कदर बढ़ गया है, इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि आने वाले दिनों में सामान्य सरकारी कर्ज जीडीपी के 91 फीसदी के बराबर हो सकती है। एक ब्रोकरेज रिपोर्ट में कहा गया है कि जनरल गवर्नमेंट का कर्ज़ जो केंद्र और राज्य दोनों की संयुक्त देनदारियों का हिस्सा है वह इस फाइनेंशियल ईयर में में जीडीपी के मुकाबले 91% हो जाएगा। 1980 के बाद से जीडीपी के मुकाबले कर्ज का यह सबसे ऊंचा स्तर होगा, जब से डाटा मेंटेन किया जा रहा है। ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विस के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी के मुकाबले जनरल गवर्नमेंट का कर्ज 75% था।

वित्त वर्ष 2030 तक जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात 80% तक हो जाएगा। विकास में अवरोध पहुंचाए बिना जीडीपी के मुकाबले कर्ज को 60% तक ले जाने का सरकार का टारगेट वित्त वर्ष 2040 तक पूरा होना भी मुश्किल लग रहा है। पिछले कुछ सालों में पूर्ण आर्थिक विकास में सरकारों के कैपिटल आउटले ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। वित्त वर्ष 2016 से सरकार का कर्ज़ लगातार बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2000 में जीडीपी के मुकाबले सरकार का कर्ज़ 66.4% था और जबकि 2015 में यह 66.6% था। 2015 के बाद यह लगातार तेजी से बढ़ रहा है और वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी के मुकाबले कर्ज 75% पर पहुंच गया है। रिपोर्ट में कहा गया है वास्तविक जीडीपी ग्रोथ अगले दशक में भी धीमी रहेगी, जब तक प्राइवेट खर्च तेजी से नहीं बढ़ेगा।

इसकी बहुत संभावना है कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी के मुकाबले कर्ज बढ़कर 91% हो जाएगा, जो 1980 जबसे डाटा उपलब्ध हो रहा है, तबसे सबसे अधिक होगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह वित्त वर्ष 2023 तक 90% से ऊपर ही रहेगा, वित्त वर्ष 2030 आते-आते जीडीपी के मुकाबले कर्ज़ घटकर 80% हो जाएगा। मौजूदा दशक में सामान्य कर्ज का बढ़ना सरकार की खर्च करने की क्षमता को कम करेगा जैसा कि पिछले कुछ सालों में हुआ भी है। वित्त वर्ष 2014 से 2020 तक वास्तविक जीडीपी ग्रोथ औसतन 6.8% के आसपास रही, जबकि इस दौरान राजकोषीय खर्च बढ़कर औसतन 9% हो गया। चूंकि गैर-ब्याज रिवेन्यू का बड़ा हिस्सा रक्षा क्षेत्र, सैलरी और पेंशन के लिए फिक्स है, ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले दशक में सरकारी इन्वेस्टमेंट और धीमी दर से बढ़ेगा।