करीब तीन महीने पहले इंटरनेट के जरिए यानी आॅनलाइन कारोबार करने वाली ‘फ्लिपकार्ट’ और ‘स्नैपडील’ जैसी कंपनियों ने ‘द बिग बिलियन डे’ की घोषणा की थी। तब विभिन्न उत्पादों पर भारी छूट की पेशकश कर इन्होंने लगभग छह अरब रुपए का माल बेचने का दावा किया था। तब इस प्रस्ताव में धोखे और गड़बड़ी को लेकर तीखे सवाल उठे थे। लेकिन उससे इतर एक गहरी चिंता यह उभरी थी कि अगर इ-व्यवसाय का स्वरूप इसी गति से बढ़ता रहा तो देश के स्थानीय बाजार और खुदरा कारोबार का क्या होगा!
अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने चिंता जाहिर की है कि ‘अमेजन’ और ‘इ-बे’ जैसी विदेशी इ-व्यवसाय कंपनियां भारतीय बाजारों के घरेलू कारोबारियों को खत्म कर रही हैं। मंच ने वित्तमंत्री अरुण जेटली से मुलाकात कर एफडीआइ के मसले पर श्वेत-पत्र जारी करने और इ-व्यवसाय पर कानूनी पाबंदी लगाने की जरूरत भी रेखांकित की थी। हालांकि भारत में फिलहाल इ-व्यवसाय में विदेशी निवेश की इजाजत नहीं है, लेकिन इस कारोबार में लगी कंपनियां दिशा-निर्देश या नियम के अभाव का फायदा उठा कर खुद को सिर्फ ‘कमीशन एजेंट’ के रूप में पेश करती हैं। लेकिन लुभावने प्रस्तावों के साथ विभिन्न कंपनियों के तमाम उत्पाद बेचने और अकूत कमाई के आर्थिक पहलू अब अनजाने नहीं हैं।
निश्चित रूप से स्वदेशी जागरण मंच की यह चिंता वाजिब हो सकती है कि भारतीय बाजार में विदेशी कंपनियों के इंटरनेट के जरिए व्यवसाय के इस स्वरूप के चलते स्थानीय बाजार के भरोसे टिके कारोबार को बड़ा नुकसान हो सकता है और बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी प्रभावित हो सकती है। लेकिन केंद्र में सरकार बनने के तुरंत बाद से भाजपा ने जिस तरह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में अतिरिक्त उत्साह का प्रदर्शन किया है, क्या इ-व्यवसाय को उससे दूर रखा जा सकता है! खुले बाजार के किसी चुने हुए क्षेत्र में विदेशी निवेश की इजाजत नहीं देने की मांग कितनी कामयाब हो सकती है!
दरअसल, आज इ-व्यवसाय दुनिया भर में घर बैठे जरूरत के सामान की खरीद-बिक्री का एक सहज और सुलभ जरिया हो चुका है और भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे तेजी से उभरता ऑनलाइन खुदरा बाजार है। एक आकलन के मुताबिक भारत में ऑनलाइन खुदरा बाजार फिलहाल साढ़े तीन अरब डॉलर का है। लेकिन पिछले कुछ समय में जिस गति में इसमें बढ़ोतरी हो रही है, उसके मद्देनजर 2018 तक इसके साढ़े चौदह अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। ऐसी कंपनियों के बेलगाम और हमलावर प्रचार के साथ-साथ बहुत सारे उत्पादों पर कई बार भारी रियायत एक ऐसा पक्ष है, जो सामान्य ग्राहकों को अपनी ओर खींचता है।
यही वजह है कि इंटरनेट उपभोक्ताओं की तादाद में लगातार बढ़ोतरी के साथ-साथ ऑनलाइन खरीदारी का दायरा भी काफी बढ़ा है। इस वृद्धि की वजह दरअसल मोबाइल इंटरनेट का प्रसार, स्मार्टफोन की ज्यादा खरीद और इसमें आसानी आदि है। आरएसएस के सहयोगी स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों को इससे खुदरा बाजार के बुरी तरह प्रभावित होने की चिंता तो सताती है, लेकिन जिन नीतियों के तहत बाजार इस शक्ल में उभरा है, उसका विरोध उन्हें जरूरी नहीं लगता। विडंबना यह भी है कि बाजार में मौजूद बड़े खिलाड़ियों के कारोबार और धोखे के बीच हमारे यहां उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ उन्हें जागरूक बनाने के लिहाज से न सरकारें अपनी ओर से कुछ करती हैं, न स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों को इसकी जरूरत महसूस होती है।
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