अरविंद कुमार मिश्रा
भारत को ऊर्जा खनिज के बड़े उत्पादकों के साथ निवेश और तकनीक हस्तांतरण परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाना होगा। ठीक वैसे ही, जैसे रूस की सखालिन तेल परियोजना में भारत ने निवेश कर सफलता अर्जित की है। खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड उपक्रम की स्थापना और उसे मिल रही सफलताएं इस दिशा में बड़ा कदम है।
किसी जमाने में सिर्फ सोना, चांदी, अल्युमीनियम, तांबा ही सबसे अहम धातु मानी जाती थीं। अब बैटरी खनिज और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व तरक्की के नए र्इंधन हैं। इलेक्ट्रानिक उपकरणों में लगे सेमीकंडक्टर, लिथियम आयन बैटरी, सौर प्लेट, वायु टर्बाइन, हाइड्रोजन कार लगभग हर उपकरण ऊर्जा खनिज पर टिके हैं।
दुनिया भर में जिस तरह पर्यावरण अनूकुल विकास को वरीयता दी जा रही है, ऐसे में ऊर्जा खनिज में आत्मनिर्भरता के बिना टिकाऊ विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। नए जमाने के ऊर्जा खनिज दो कुनबे में बंटे हैं। पहला, बैटरी खनिज जिसमें लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और ग्रेफाइट शामिल हैं। दूसरा, सत्रह दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व, जिसमें नियोडिमियम, प्रजोडिमियम, डिस्प्रोसियम आदि शामिल हैं।
भारत को अपनी जरूरत का छियानबे फीसद लिथियम आयात करना पड़ता है। लेकिन कुछ समय पहले जम्मू के रियासी जिले में लिथियम के 59 लाख टन विशाल भंडार होने के सबूत मिले हैं। कर्नाटक के मंड्या जिले में 1600 टन लिथियम भंडार की पुष्टि हो चुकी है। अगर इन खनन परियोजनाओं का पूरी तरह दोहन करने में सफलता मिली तो भारत लिथियम निर्यातक देशों की श्रेणी में आ जाएगा। लिथियम आयन बैटरी के एक मुख्य घटक कोबाल्ट का भारत में उत्पादन लगभग नगण्य है। 2021 में दो अरब 50 करोड़ से अधिक का कोबाल्ट का निर्यात किया गया। भारत कांगो और आस्ट्रेलिया में कोबाल्ट के उत्खनन की नीति पर काम कर रहा है।
गैस टर्बाइन और राकेट इंजन, लिथियम आयन बैटरी, स्टेनलेस स्टील, विभिन्न प्रकार की मेटल और विद्युत चुंबकीय परत में इस्तेमाल होने वाले निकेल का भारत में उत्पादन अभी नाममात्र का है। सिर्फ ओड़ीशा के पास देश में पाए जाने वाले निकेल का 93 फीसद रिजर्व है। झारखंड के जादुगोड़ा, क्योंझर, पूर्वी सिंहभूम और नगालैंड के किफेरे में तीन प्रतिशत निकेल पाया जाता है।
भारत के सामने निकेल निस्कर्षण से जुड़ी तकनीक का अभाव एक बड़ी चुनौती है। भारत के पास उच्च गुणवत्ता के ग्रेफाइट रिजर्व कम हैं। वर्तमान में यह लगभग 35 हजार किलो टन है। जबकि मांग छह गुना अधिक होने से निर्यात पर निर्भर रहना पड़ता है। उर्जा खनिज का दूसरा कुनबा 17 दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व का है। इसके वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी भले ही एक प्रतिशत है, लेकिन यहां पांचवां सबसे बड़ा रिजर्व है।
ऊर्जा खनिज की आत्मनिर्भरता अब सिर्फ परंपरागत खनन से उत्पादन क्षमता हासिल करने तक केंद्रित नहीं है। ऐसे देश जिनके पास प्राकृतिक रूप से ऊर्जा खनिज उपलब्ध नहीं हैं, वे देश भी इन बेशकीमती खनिज में आत्मनिर्भर हो रहे हैं। इसके पीछे शहरी खनन (अर्बन माइनिंग) एक मजबूत व्यवस्था के रूप में उभरी है। जापान की तोहुकू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिडियो नांज्यो ने पहली बार 1980 में शहरी खनन शब्द का प्रयोग किया था।
शहरी खनन में कोयले, लौह अयस्क या बाक्साइट के खनन जैसी भौगोलिक परिक्षेत्र में उत्खनन गतिविधि नहीं होती, बल्कि इलेक्ट्रानिक वस्तुओं से पैदा कचरे से खनिज और धातुएं निकाली जाती हैं। इस व्यवस्था में ई-कबाड़ का ढेर दुर्लभ खनिज का स्रोत साबित होता है, जिन्हें शहरी खदान या अर्बन माइंस कहते हैं। वैश्विक ई-कचरा निगरानी या ग्लोबल ई-वेस्ट मानिटर 2017 की मानें तो भारत सालाना लगभग दो मिलियन टन ई-कचरा पैदा करता है। अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद हम ई-कचरे के पांचवें बड़े उत्पादक हैं। 2016-17 में भारत कुल ई-कबाड़ का सिर्फ 0.036 मीट्रिक टन ही निपटान कर पाया।
2018 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक शहरी ई-कचरे से छह हजार 900 करोड़ रुपए का सोना हासिल किया जा सकता है। लिथियम, कोबाल्ट, तांबा, अल्युमिनियम, सिल्वर और पैलेडियम जैसी महंगी धातुओं के लिए इलेक्ट्रानिक कबाड़ अच्छा स्रोत है। अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी के मुताबिक एक मीट्रिक टन मोबाइल से 300 ग्राम सोना निकाल सकते हैं। परंपरागत खनन में सोने के अयस्क से प्रति टन महज दो या तीन ग्राम सोना ही मिलता है। शहरी खनन की यह व्यवस्था किसी सामान के दोबारा उपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती है।
सन 2015 में हुए पेरिस समझौते को लागू करने के दौरान अगले बीस साल में धरती के नीचे छिपे खनिजों की मांग चार गुना अधिक होगी। ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए तांबा और ई-वाहनों में लीथियम, सोलर पैनल में सिलिकान और विंड टर्बाइन के लिए जिंक की मांग पूरी करना बड़ी चुनौती है। लिथियम आयन बैटरी स्मार्ट फोन से लेकर इलेक्ट्रिक कारों को ताकत प्रदान करता है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी का कहना है कि इलेक्ट्रिक कार में सीएनजी कार के मुकाबले छह गुना अधिक खनिज खर्च होता है। इसी तरह ‘आफशोर विंड टर्बाइन’ में गैस आधारित बिजली संयंत्र के मुकाबले नौ गुना खनिज लगते हैं।
पिछले साल पर्यावरण मंत्रालय द्वारा नया बैटरी कचरा प्रबंधन नियम 2022 लागू किया गया है, जो शहरी खनन को बढ़ावा देंगे, लेकिन इसके लिए कुछ अहम कदम उठाने होंगे। पहला, ई-कचरा एकत्र करने की व्यवस्था मजबूत हो। उपयोग में नहीं लाए जा रहे इलेक्ट्रानिक साजो-सामान को कहां और कैसे सौंपें, इसकी जानकारी एक सामान्य व्यक्ति को नहीं होती।
दूसरा, ऐसी तकनीक हासिल करनी होगी जो पुरानी वस्तुओं से महंगी धातुएं आसानी से निकाल सकें। ‘नेशनल मेट्रोलाजिकल लेबोरेट्री’ ने ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है, जिससे लिथियम आयन बैटरी से 95 फीसद शुद्ध कोबाल्ट प्राप्त किया जाता है। ऐसी तकनीक अन्य ऊर्जा खनिजों के पुनर्चक्रण के लिए विकसित करनी होगी। तीसरा, जरूरी नहीं पुरानी वस्तुओं से हासिल धातुओं की गुणवत्ता पहले जैसी हो। ऐसे में इन खनिज और धातुओं को दोबारा कैसे और कहां उपयोग में लाया जाए, इसके विकल्प तैयार करने होंगे।
चौथा, उत्पाद से लेकर परियोजनाओं को कुछ इस तरह तैयार किया जाए कि उसमें इस्तेमाल खनिज और महंगे तत्त्व को फिर से हासिल करना आसान हो। पांचवां, विनिर्माण क्षेत्र से लेकर हर उस क्षेत्र को शहरी खनन के दायरे में लाया जाए, जहां कचरे से संसाधन सृजन के मौके हैं। मसलन, भवन निर्मांण से स्टील, वाहन उद्योग से मैग्नीज, निकेल और क्रोमियम जैसे दुर्लभ खनिज दोबारा हासिल किए जा सकते हैं। इसके लिए शहरी खनन कंपनियां खड़ी करनी होगी। छठा, भारत अभी 14 अरब रुपए दुर्लभ और बैटरी खनिज के उत्खनन में खर्च करता है, जबकि अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कनाडा लगभग 82 अरब रुपए खर्च करते हैं। ऊर्जा खनिजों के शहरी खनन पर केंद्रित वित्तीय संस्थान स्थापित किए जा सकते हैं।
ऊर्जा खनिज के मामले में पिछले कुछ सालों में चीन ने अपनी रणनीति बदली है। अब वह ‘प्रोसेसिंग’ और ‘उन्नत रिफाइनिंग तकनीक’ के दम पर शहरी खनन का बड़ा बुनियादी ढांचा खड़ा कर चुका है। इसके जरिए वह पुराने इलेक्ट्रानिक उपकरणों और वस्तुओं से बैटरी खनिज प्राप्त कर रहा है। अकेले बैटरी मिनरल की वैश्विक आपूर्ति शृंखला में चीन की 75 फीसदी हिस्सेदारी के पीछे शहरी खनन की बड़ी भूमिका है।
मध्य अमेरिकी देश कोस्टारिका के पास लिथियम के कोई भंडार नहीं है, लेकिन वह शहरी खनन से इतना लिथियम हासिल करने में सक्षम हो गया है, जिसकी बदौलत यह निर्यातक बन चुका है। इसी तरह जापान आटोमोबाइल अवयवों से विभिन्न धातुएं हासिल करने में अव्वल है। शहरी खनन की क्षमता को देखते हुए जी-7 देशों ने खनिज सुरक्षा साझेदारी की है। कनाडा की पहल पर ‘सतत क्रिटिकल मिनरल समझौता’ और यूरोपीय यूनियन ने ‘क्रिटिकल ला मटेरियल क्लब’ स्थापित किया गया है।
फिक्की की रिपोर्ट के मुताबिक भारत बैटरी और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व की अपनी क्षमता का 10 फीसद उत्खनन कर पाया है। भारत को ऊर्जा खनिज के बड़े उत्पादकों के साथ निवेश और तकनीक हस्तांतरण परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाना होगा। ठीक वैसे ही, जैसे रूस की सखालिन तेल परियोजना में भारत ने निवेश कर सफलता अर्जित की है। खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड उपक्रम की स्थापना और उसे मिल रही सफलताएं इस दिशा में बड़ा कदम है। शहरी खनन के महत्त्व को देखते हुए भारत को इससे जुड़ी तकनीक में आत्मनिर्भर होने के साथ घरेलू स्तर पर उत्खनन को भी बढ़ावा देना होगा।